शक्ति के संघर्ष में देश के ही नहीं बल्कि सहकारिता के भी भविष्य का नुकसान होगा। अमूल पाकिस्तान की राह पर चल पडा है क्योंकि जनतांत्रिक रूप से चुने अध्यक्ष के साथ उठा पटक हो रही है।
गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (GCMMF) में १३ जिलों की ईकाइयां शामिल हैं जिन्हें अमूल के ब्रांड नाम का मालिकाना हक प्राप्त है। उनमें से दस में निष्ठा बराबर बदलते रहने की प्रवृत्ति है जिससे अमूल में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई है। चार साल पहले उन्होंने वर्गीज कुरियन को भी नहीं छोडा और उन्हें निकाल बाहर कर दिया। आज वे GCMMF के वर्तमान अध्यक्ष श्री पार्थी भाई पटेल को भी दरवाजा दिखाने को तैयार हैं। क्या वे कल उसके विरुद्ध मत नहीं देंगे जो आज नेता के रूप में उभर रहा है?
शक्ति/सत्ता के संघर्ष में मई माह में श्री बी.एम. व्यास को भी निकलना पडा। संघर्ष इतना बढ गया कि अध्यक्ष श्री भटोल का निकलना लगभग तय था। बोर्ड की बैठकें बार बार रद्द हुईं। लेकिन ३० जून को अचानक चार निदेशकों (सूरत डेयरी के श्री मनु भाई पटेल, सबरकठा डेयरी के श्री जेठा भाई पटेल, गांधी नगर डेयरी के श्री शंकर सिंह राणा) नें भटोल का साथ दे दिया।
परंतु शांति अधिक देर तक कायम नहीं रह सकी। भटोल का विरोधी खेमा निदेशकों पर केंद्रित हो गया और अब ७ अगस्त को उन्होंने पहला आक्रमण किया। प्रबंध निदेशक के पद के लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश करने के लिए सात सदस्यों की एक समिति गठित कर दी गई है।
श्री भटोल के लिए यह एक पहला बडा धक्का है। १२ अगस्त को बहुमत से बोर्ड की बैठक रोक दी गई। वृहस्पतिवार को भटोल को फिर हाशिए पर ला दिया गया क्योंकि १३ में से ११ सदस्य बैठक में शामिल नहीं हुए। साढे तीन दशक से अधिक लम्बे इतिहास में GCMMF को विगत तीन माह में बोर्ड की बैठक को तीन बार स्थगित करने के लिए बाध्य होना पडा। श्री भटोल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करने के लिए २१ अगस्त को फिर एक बैठक बुलाई गई है।