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सर्वोच्च न्यायालय का पवार पर प्रहार, सहकारी समितियों के लिए अवसर

अनाजों के सड़ने से अंततः “गरीबों के मसीहा” कृषि मंत्री शरद पवार के समक्ष प्रश्न उत्पन्न हो गया है.  मंगलवार ३१ अगस्त २०१० को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने उनको इस समस्या के प्रति उदासीन दृष्टिकोण के लिए फटकारा.

पाठकों को याद होगा, 12 अगस्त को अदालत ने कहा था कि अगर सरकार अनाज सुरक्षित नहीं रख सकती तो इसे गरीब लोगों के बीच मुफ्त वितरित किया जाना चाहिए.

पवार ने कोर्ट के अवलोकन को हल्के लिया और कहा कि अदालत ने सिर्फ एक सुझाव दिया है और सरकार इस पर विचार करेगी.

३१ अगस्त को न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरन को कहा, “अपने मंत्री को  ऐसी किसी भी टिप्पणी करने से बचने के लिए कहें.”

अदालत ने कहा: “यह हमारा आदेश है, एक सुझाव नहीं.”

अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया की वह बीपीएल, एपीएल और अन्त्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों का नए सिरे से सर्वेक्षण करे.  अदालत ने केंद्र सरकार के रियायती खाद्य योजनाओं के लाभार्थियों के आंकड़े पर कई राज्यों द्वारा असहमति व्यक्त करने के मद्देनजर यह आदेश पारित कर किया.

अदालत ने सरकार से कहा है कि वह सभी राज्यों में बड़े गोदामों का निर्माण सुनिश्चित करे.  यह एक ऐसा काम है जिस पर एन.सी.सी.एफ की नजर है.

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