कृषि सहकारी संस्था नैफेड बिना बोर्ड या सरकार की दिलचस्पी आकृष्ट किए अधर में इंतज़ार कर रहा है. बेल-आउट पैकेज दोनों पक्षों के लिए छलावा बना हुआ है – सरकार और नैफेड-बोर्ड अपने स्टैंड पर अडे हुए हैं.
नुकसान किसका है? वास्तव में न तो सरकार का और न ही नैफेड का. असहाय और मौन किसान, जिसके लिए यह सहकारी संस्था बनी, इसके शिकार बन रहे हैं. लेकिन कौन परवाह करता है?
सूत्रों के अनुसार नैफेड बोर्ड की अंतिम बैठक में बोर्ड उन शर्तों को मानने के लिए तैयार था, जिनसे सरकार को संगठन पर अत्यधिक नियंत्रण रखने का अधिकार प्राप्त हो सकता है. यदि प्रस्ताव स्वीकार हो जाते हैं तो सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि नैफेड को किसी भी गैर-कोर गतिविधियों में लिप्त न होने दिया जाय, विशेषकर लापरवाह प्रकृति के व्यापारिक गठबन्धन.
सरकारी शर्तों की सूची में 51% इक्विटी का सरकार के पक्ष में हस्तांतरण का मामला शीर्ष पर है जब तक उचित पर्यवेक्षण और वित्तीय अनुशासन की दृष्टि से कृषि मंत्रालय को ऋण का भुगतान कर दिया जाता है.
अन्य शर्तों में नैफेड के बाइ-लॉ में बदलाव की बात शामिल है जिससे कि वह खुद को मुख्य कृषि संबंधी गतिविधियों तक सीमित रहे.
लेकिन अध्यक्ष की शक्ति में कटौती की बात ने मुद्दे को निपटने नहीं दी.
हालांकि विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार वर्तमान अध्यक्ष सहित बोर्ड के अधिकांश सदस्य इस बात पर सहमत थे लेकिन NCUI के अध्यक्ष और नैफेड के उपाध्यक्ष चन्द्रपाल सिंह ने असहमति व्यक्त की और अध्यक्ष के अधिकार को अक्षुण्ण रखना चाहा.
सरकार अपनी ओर से चुप्पी साधे हुए है. पूर्व प्रबंध निदेशक सी.ह्वी.आनंद बोस की बर्खास्तगी के मुद्दे पर अपनी अप्रसन्नता दिखाते हुए सरकार ने अपने पत्ते बन्द रखे हुए हैं. नए प्रबंध निदेशक संजीव चोपड़ा से संपर्क करने के प्रयास व्यर्थ साबित हुए क्योंकि वे प्रेस का सामना करने में झिझक रहे हैं.
इस बीच, सूत्रों के अनुसार, भ्रष्टाचार के मामलों में जांच जारी है जिसके लिए केन्द्रीय पंजीयक प्रत्येक अभियुक्त से व्यक्तिगत रूप से मिल रहे हैं जिससे कि सच्चाई का पता लग सके. पाठकों को ज्ञात होना चाहिए कि जांच समिति ने कुछ निदेशकों और नैफेड के 29 अधिकारियों को नोटिस भेजा है.
नैफेड के मामलों पर नजर रखने वालों को आशंका है कि अभियुक्त सारे आरोप स्व. अजित सिंह पर मढने का प्रयाश करेंगे जो स्वयं को बचाने के लिए जीवित नहीं है. जांच का एक सरल और प्रभावी तरीका यह हो सकता कि अभियुक्त की पूर्व और वर्तमान परिसंपत्तियों की तुलना की जाय. अगर संपत्ति में वृद्धि तर्कसंगत हो तो ठीक वरना उपयुक्त कारवार्ई शुरु कर देनी चाहिए.
नैफेड, जो कभी एक प्रतिष्ठित कृषि सहकारी संस्था थी, का इस स्तर तक पतन भारत में सहकारी आंदोलन के लिए चिंता का विषय. नैफेड का भविष्य अब क्या वास्तव में भगवान के हाथों है?