अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव में एन.सी.एच.एफ. के प्रबंध निदेशक डॉ. मदनलाल खुराना का एक सपना है. एक सपना जिसका नाम उन्होंने “झुग्गी सहकारी” रखा है, शहर की झुग्गी बस्तियों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला देगा. हमारे प्रमुख शहर चाहे दिल्ली हो या मुंबई, और कुछ नहीं बल्कि झुग्गी-झोपड़ बस्तियों का विस्तार हैं जहां पर कहीं-कहीं कुछ अच्छी कॉलोनियां भी दिखाई पड़ जाती हैं.
खुराना केवल बातें ही नहीं कर रहे हैं बल्कि दक्षिण दिल्ली से सटे फरीदाबाद में एक पायलट परियोजना भी शुरू कर चुके हैं. डॉ. खुराना का दावा है कि यदि हम आवास सहकारी और विशेष रूप से झुग्गी सहकारी पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो ललिता पार्क जैसी भवनों के ढहने की घटनाएं जिसमें 71 लोगों की मौत गई थी, की पुनरावृत्ति नहीं होगी.
उनका विचार झुग्गी बस्तियों में आवास, ऋण बचत और खुदरा व्यापार के आसपास मंडराता है. झुग्गी वासियों को बैंक ऋण नहीं देते और बाजारू सुदखोरों की ब्याज दर ३० प्रतिशत से भी अधिक होती है. डॉ. खुराना ने कहा कि अगर इसे लागू करने में सफलता मिलती है तो इससे अनगिनत लोग लाभान्वित होंगे.
उन्हें इस बात का दुःख है कि इन दिनों एन.सी.एच.एफ. को जमीन नहीं मिल पा रही है. वे आगे कहते हैं कि निजी बिल्डरों, जो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई भी हथकंडा अपना सकते हैं, से पार पाना अत्यन्त कठिन है.
आवास सहकारी की भूमिका की सराहना करते हुए डॉ. खुराना कहते हैं कि सहकारी आवास समितियों में हिंसा की कम घटनाएं होती हैं, बेहतर सुरक्षा प्रणाली है और एक तरह का भावनात्मक जुड़ाव भी है. प्रबंध निदेशक ने कहा कि एन.सी.एच.एफ., हाउसिंग सोसायटी के पदाधिकारियों के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है.
लेकिन अगर आवास सहकारी समिति के पदाधिकारियों में निहित स्वार्थ विकसित हो जाए तब? एम.डी. ने कहा कि बराबर निगरानी रखने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे ऐसा कानून बनाएं जिससे कि आम सभा की बैठक साल में 3 बार के बजाय चार बार हुआ करे. दिल्ली सहित कई राज्यों ने इस बात को मान लिया है, जिसपर डॉ.खुराना ने संतुष्टी व्यक्त की.
डॉ. एम.एल. खुराना जो कई किताबों के लेखक और सहकारी विषय के बड़े विद्वान हैं, का विचार है कि आवास संघों का विस्तार सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में किया जाय.
एन.सी.एच.एफ. में 92000 आवास सहकारी समितियों की सदस्यता है जिसमें 65 लाख व्यक्ति शामिल हैं. यह निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए पच्चीस लाख घरों का निर्माण का दावा करता है. इसने लगभग 11 हजार करोड़ रुपए के कर्ज भी दिए हैं.
भूमि की कमी की समस्या से जूझते रहने के कारण डॉ. खुराना ने राज्यों के मुख्य मंत्रियों को पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि राज्यों में उपलब्ध आवासीय भूमि का 33 प्रतिशत NCHF के लिए आरक्षित किया जाय. प्रश्न कि “वह क्या उम्मीद करते हैं” के जवाब डॉ. खुराना केवल एक शुष्क मुस्कान बिखेरते हैं.