मदर डेयरी की तीन सौ दुकानें, केन्द्रीय भंडार की 20 दुकानें, एनसीसीएफ स्वामित्व वाली 15 दुकानें और कई मोबाइल वैन –
एनसीसीएफ के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह ने इस तरह से एक आसान तरीके से दिल्ली के नागरिकों के आँसू, जो प्याज की वजह से बह रहे थे, को पोंछ दिया है.
भारतीयसहकारिता.कॉम से बात करते हुए श्री सिंह ने कहा कि मंत्री ने 23 रुपये प्रति किलो की दर से प्याज बेचने के लिए निर्देश दिया है, लेकिन वे शुक्रवार के बाद इसे और कम कीमत पर बेच सकते हैं.
पिछले महीने से तनावपूर्ण स्थिति में काम करते हुए एनसीसीएफ ने साबित कर दिया है कि यह जरूरत के क्षणों में नफेड से बेहतर सेवाएं दे सकता है और उस पर सरकार भरोसा कर सकती है.
नासिक मंडी से प्याज की पैकेजिंग, दिल्ली लाना, अपने केन्द्रों द्वारा खुदरा में बिक्री करना – यह सारा काम सहकारी उपभोक्ता समिति के लिए बहुत आसान नहीं था.
एनसीसीएफ प्याज के आयात से मना कर दिया लेकिन नफेड ने भंडारण सुविधाओं की कमी के बहाने आयात किया. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि विदेशी प्याज कम गुणवत्ता की थी जिससे एनसीसीएफ हतोत्साहित हो गया.
जब देश में प्याज संकट गहरा गया, सरकार ने बाजार के हस्तक्षेप की योजना बनाई. सरकार ने संकट प्रबंधन के लिए नाफेड और एनसीसीएफ जैसी सहकारी संस्थाओं को चुना.
भारतीय सहकारी समितियों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि मुसीबत की घड़ी में राष्ट्र सहकारी समितियों पर भरोसा कर सकता है.
ऐतिहासिक दृष्टि से भी, प्याज एक राजनीतिक मजाक बन गया जिसपर एक बार अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रतिक्रिय व्यक्त की थी – “भारतीय लोकतंत्र प्याज की दर से बिक गया”. शुक्र है, सहकारी संस्थाओं ने तूफान को वीरतापूर्वक झेल लिया.