बजट सत्र आरम्भ हो गया है. सहकारी समितियों पर से आयकर को हटाने के लिए लड़ाई की गतिविधियों में तेजी आ गई है. शहरी सहकारी बैंकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शहरी सहकारी बैंकों पर से आयकर हटाने की मांग के लिए बुधवार को केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की.
पाठकों को पता है कि सहकारी समितियों पर वर्ष 2006 में आय कर लगाया गया था और यह तब से यह जारी है.
शहरी बैंकों का कहना है कि चुंकि सहकारी बैंकों के दायरे में जनसंख्या के कमजोर वर्ग आते हैं जहां जोखिम की अधिक गुंजाइश होती है, अतः इन बैंकों को आयकर से मुक्त रखा जाना चाहिए. हम उस रास्ते पर चल रहे है जहां चलने में निजी वाणिज्यिक बैंक भय खाते हैं. यह न केवल बैंकिंग है बल्कि एक प्रकार की समाज सेवा है, उन्होंने कहा.
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार प्रणव मुखर्जी ने प्रतिनिधिमंडल को सहानुभूतिपूर्वक विचार का आश्वासन दिया है.
शहरी सहकारी बैंकों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व माकपा के बासुदेव आचार्य और संयोजक सीवी कुमार कर रहे थे. उन्होंने संसद भवन में मुखर्जी से मुलाकात की और ऐसे बैंकों पर लगाए गए आयकर को हटाने की मांग की.
प्रतिनिधिमंडल ने यह भी अनुरोध किया है कि सहकारी बैंकों पर प्रभावी कर की दरें कम की जांए.
कुमार ने कहा, “वित्त मंत्री ने हम से कुछ स्पष्टीकरण की मांग की और आश्वासन दिया कि हमारी चिंताओं को या तो वर्तमान बजट में ध्यान में रखा जाएगा या जब प्रत्यक्ष कर संहिता प्रभावी हो जाएगी.”
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि वित्त मंत्री ने उन्हें गौर से सुना और मांगों के लिए सकारात्मक रुख दिखाया.