कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले दिनों कहा कि बम्पर उत्पादन और पर्याप्त स्टॉक की स्थिति को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह गेहूं, चावल और चीनी के निर्यात की अनुमति देने पर गंभीरतापूर्वक विचार करे.
चीनी के निर्यात की अनुमति के बारे में उन्होंने कहा कि ईजीओएम द्वारा इस सप्ताह इस मुद्दे पर विचार किए जाने की संभावना है.
“इस साल चीनी के निर्यात पर गंभीरता से विचार किया गया कि सरकार द्वारा आधा मिलियन टन के निर्यात की अनुमति दे दी जाय. कोटा का आवंटन भी किया गया था लेकिन निर्णय को रोक दिया गया था.
“यदि हमें फिर से विचार करना है तो हमें मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (जीओएम) की बैठक बुलानी होगी. ….” उन्होंने कहा.
चीनी उत्पादन पिछले वर्ष 19 मिलियन टन की अपेक्षा इस वर्ष 2010-11 (अक्टूबर से सितंबर) में 24.5 मिलियन टन होने का अनुमान है. अनुमानित वार्षिक मांग 22 मिलियन टन की है और पिछले वर्ष का बचा स्टाक 5 मिलियन टन का है.
मंत्री ने यह भी कहा कि अनुकूल मौसम होने के कारण गेहूं का उत्पादन 84 मि.टन होने की संभावना है.
“मैं किसी चीज का समर्थन नहीं कर सकता. मुझे पता है कि चाहे चावल हो या गेहूँ या कि चीनी, हमारे भंडार की स्थिति अच्छी है . मुझे लगता है कि यह समय आ गया है कि सरकार गंभीरता पूर्वक विचार करे और कुछ निर्यात की अनुमति दे.” उन्होंने कहा.
भारतीय खाद्य निगम के पास गोदाम में 47 मिलि. टन गेहूं और चावल है जबकि 1 जनवरी तक बफर मानदंड 25 मिलियन टन का है.
पवार ने ऊंची कीमतों और वैश्विक बाजार में कम आपूर्ति की स्थिति का लाभ उठाने के लिए गेहूं के निर्यात का समर्थन किया. रिपोर्ट है कि चीन में सूखे की स्थिति की वजह से गेहूं की फसल में गिरावट है.
गेहूं और गैर बासमती चावल के निर्यात पर क्रमशः फरवरी 2007 और अप्रैल 2008 में प्रतिबंधित लगा दिया गया जिससे कि उच्च मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखा जा सके. हाल ही में, गैर बासमती चावल की तीन श्रेष्ठ किस्मों के 1.5 लाख टन के निर्यात की अनुमति दी गई थी.