बैंकविशेष

शहरी सहकारी बैंकों का अवसान दूर नहीं

जिस ढंग से शहरी सहकारी बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के उल्लंघन के मामले सामने आ रहे हैं, यह संदेह मजबूत होता जा रहा है कि क्या ये बैंक विश्वसनीय माध्यम बने रह सकते हैं जिनके द्वारा सरकार गरीबों की समस्या के उन्मुलन के लिए कर्यक्रम चला सकती है.

अधिकांश मामलों में काम करने का ढंग यह होता है कि शहरी सहकारी बैंक अपने बोर्ड के निर्देशकों को ऋण देता है या उनेके रिश्तेदारों को. ऐसे मामलों मे नियमों का उल्लंघन किया जाता है और पक्षपात के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों कि धज्जियां उड़ाई जाती हैं.

इस तरह के मामले में सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए पुणे के जय भवानी सहकारी बैंक लिमिटेड पर रिजर्व बैंक के निर्देश के उल्लंघन के लिए एक लाख रुपए का आर्थिक दंड लगाया.

भारतीय रिजर्व बैंक ने एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसके जवाब में बैंक ने लिखित उत्तर प्रस्तुत किया.  मामले के तथ्यों और बैंक के उत्तर पर विचार करने के बाद, रिजर्व बैंक इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उल्लंघनों की पुष्टि हुई है और दंड लगाया जाना जरूरी था.

केवल कुछ ही दिनों पहले भारतीयसहकारिता.कॉम ने पुणे के मुस्लिम सहकारी बैंक द्वारा रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के उल्लंघन की सूचना दी थी. माधवपुरा सहकारी बैंक की कहानी कुछ इसी तरह की है.

शहरी सहकारी बैंकों में घोटालों की अनेक घटनाएं हैं जो समय समय पर मीडिया में आती रहती हैं.  रिजर्व बैंक द्वारा कुछ बैंकिंग मानदंडों के उल्लंघन के कारण सहकारी क्षेत्र के दो उधारदाताओं – सूरत मर्केंटाइल सहकारी बैंक और शहरी सहकारी बैंक, कटक पर 5.०० लाख रु का जुर्माना लगाया गया था.

यहां तक ​​कि महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री और मराठा दिग्गज शरद पवार के करीबी शिवाजी काले पर ऐसे ही एक मामले में आरोप-पत्र दाखिल किया गया जिसमें पुणे का एक शहरी सहकारी बैंक शामिल था.

रिजर्व बैंक ने चार सहकारी बैंकों पर मनी-लॉण्डरिंग विरोधी दिशानिर्देशों के उल्लंघन समेत विभिन्न आरोपों में एक लाख रुपए का दंड लगाया. ये चार बैंक हैं – जामनगर महिला सहकारी बैंक, अमरेली नागरिक सहकारी बैंक, श्री महिला सेवा सहकारी बैंक, अहमदाबाद और वीरम्बम मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक, आरबीआई ने अलग बयान में कहा.

हैरानी की बात है ये सभी मामले अकेले वर्ष 2011 के हैं. अगर हम अतीत के आंकड़े देखें तो हैरान रह जाएंगे.

कुछ लोग हैं जो अच्छा काम कर रहे हैं और जिनकी वजह से विश्वसनीयता के निशान बचे हैं. इला भट्ट और चेतन सिन्हा इसके उदाहरण हैं.  लेकिन ऐसे उदाहरण पर्याप्त नही है.

समय आ गया है कि शहरी सहकारी बैंक अपने तौर-तरीके बदलें अन्यथा लोगों का असंतोष और सरकारी कठोर कार्रवाई उनके असामयिक अवसान का कारण बनेगी.

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close