उर्वरक

बिहार : उर्वरकों की अनियंत्रित कालाबाजारी

उर्वरकों की कालाबाजारी बिहार में बड़े पैमाने पर थी और राज्य में कीमतों की वृद्धि का यही कारण था, जहां  विक्रेता किसानों को डाइ-अमोनियम और फॉस्फेट यूरिया के साथ खरीदने के लिए मजबूर कर रहे थे, भाजपा विधायक अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा.

सिंह ने राज्य विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक अनुपूरक प्रश्न उठाया है और उन विक्रेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की जो किसानों को अनावश्यक उर्वरक खरीदने के लिए मजबूर कर रहे थे.  उन्होंने उर्वरकों की कालाबाजारी के खिलाफ मजबूत उपाय की आवश्यकता पर बल दिया.

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह विधायक को आश्वस्त किया कि राज्य सरकार दोषी दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई करेगी.

उन्होंने कहा कि विधायकों और आम लोगों को भी उर्वरकों की बिक्री में अनियमितताओं को संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के ध्यान में लाना चाहिए.

राज्य में जिला स्तरीय निगरानी समितियां हैं जिसके सदस्यों में क्षेत्र के संबंधित विधायक भी होते हैं, ये समितियां उर्वरकों की कालाबाजारी पर रोक लागाने का काम करती हैं.

जब भारतीयसहकारिता.कॉम ने कृभको उपाध्यक्ष श्री चन्द्र पाल सिंह यादव के सामने उर्वरकों की कालाबाजारी का मुद्दा उठाया तो उन्होंने कहा कि कृभको केवल सहकारी समितियों के माध्यम से ही उर्वरक वितरित करता है और इस तरह कालाबाजारी का सवाल ही नहीं उठता.

उर्वरक की कालाबाजारी के रोक के मुद्दे पर श्री यादव ने कहा कि इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए.

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10 Comments

  1. मै रासायनिक उर्वरक के व्यापार से जुड़ा हुआ एक मारवाड़ी और इस नाते एक चोर व्यापारी हूँ और आपके कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह जी के अनुसार दो नंबर का आदमी हूँ |

    २. रासायनिक उर्वरक जैसे डी.ए.पी. ,यूरिया ,पोटाश ,एन.पी.के. मिक्सचर १२:३२:१६ .१०:२६:२६ ,१५:१५:१५,१६:१६:१६ ,२०:२०:०:१३ ,१५:१५:१५ :९ आदि में १०० रुपैया प्रति बोरा ५० किलोग्राम से २५० रुपैया प्रति बोरा की दर से कालाबाजारी होती है और यह बात मंत्री से लेकर इनके सभी संतरियों को भी मालूम है |

    ३.इनके ३८ सों जिला के कृषि पदाधिकारी १५ रुपैया प्रति बोरा से लेकर २५ रुपैया प्रति बोरा थोक उर्वरक विक्रेताओं से बतौर घुंस लेते हैं |किसी भी जिला कृषि पदाधिकारी के पास ५ करोड से लेकर १० करोड की काला धन जमा हो गया है |सभी जिला कृषि पदाधिकारियों का कम से कम एक फ़्लैट पटना या भारत के मेट्रोपोलिटन सिटी में ख़रीदा जा चूका है | यह नंगी सच्चाई है |मंत्री तो यह कहेंगे ही की अपने इस वक्तव्य को शम्भू गोयल prove करे |वास्तविकता यह है की मैंने खुद देखा है थोक व्यापारियों से यह रुपैया जिला स्तर से लेकर पटना स्तर तक विभिन्न पदाधिकारिओं को दिया जाता है |मैं जानता हूँ की फिर मेरे ऊपर यह मंत्री एक और प्राथमिकी दर्ज करवा दे सकतें है |

    ४. इनके विभाग में एक अत्यंत कर्मठ ,कृषि विज्ञानं का non-pareil ज्ञाता, ईमानदार , अदम्य साहसी , कर्मवीर ,उर्वरक की chemistry का एकमात्र ज्ञान वान पदाधिकारी,सभी अति ईमानदार वरीय पदाधिकारियों का चहेता संजय सिंह (उप कृषि निदेशक ,सांख्यिकी लेकिन वर्तमान में राज्य स्तर का प्रभारी उर्वरक कोषांग है )जिसने अपने हिसाब से उर्वरक अधिनियम १९८५ को तोड़-मरोड़ कर अपने निजी स्वार्थ के कारण उर्वरक की घोर काला बाजारी को जन्म दिया है |

    ५.सबसे चिंता का विषय यह है की मंत्री जी से इस पदाधिकारी के कुकृत्यों के बारे में मैं जब कहने गया तब मंत्री जी ने सीधे मेरे ऊपर वार किया और कहा की ये लोग(मेरे बारे में) तो दो नंबर के आदमी हैं | इतना कम नहीं है की और कोंई अपशब्द मंत्री जी ने नहीं कहा |

    ६.मेरी एक अपनी कहानी है जिसको आपके मुख्य मंत्री जी को लिखते लिखते थक गया हूँ लेकिन अभी तक कोंई भी सुनवाई नहीं हुई है |मन तो यह करता है की अपने को जला कर मार डालूं लेकिन तभी सोच आता है की मेरे मरने से क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा , मेरा बेटे को ,मेरे परिवार को तो सरकारी महकमे के ये ऑफिसर भूखों मार देंगे और मंत्री जी विधान परिषद में साफ़ झूट बोल कर अपने को बरी कर लेंगे |और नहीं होगा तब तारा कान्त जी को मुख्य मंत्री जी से डटवा देंगे जिससे किसी भी और मेंबर की हिम्मत ही नहीं होगी इनके या इनके विभाग के विरूद्ध में कुछ बोलने की |ऐसा ये कई बार कर चुकें है | चूँकि ये मंत्री हैं और एक ऐसी जाति के हैं और बाहुबली भी हैं इनके विरूद्ध कौन क्या बोल सकता है |ऐसे भी राहे बेगाहे अपनी शक्ति का ये प्रदर्शन करते ही रहते हैं |आप लोगों ने सुना ही होगा ,जब NDA I के पहले ही दिन एक मारवाडी विधान सभा के अपर सचिव को इन्होनें थप्पड़ मारा ही था |वो व्यक्ति इनका क्या बिगाड़ लिया |कुछ ही दिन पहले एक मजबूर गरीब माँ को भी इन्होनें धक्का दे ही दिया था जब शायद ये भागलपूर पहुंचे थे कृषि विभाग का गुणगान करने |इनकी यह करतूत IBN live tv पर दिखाई गयी थी |

    ७. मैं चाहता हूँ कृपया मुझे आपलोग कुछ समय दें मैं बहुत सी बातें कृषि विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में बताना चाहता हूँ |उर्वरक की कालाबाजारी इनलोगों को अगर रोकनी है तब सबसे पहले संजय सिंह से आप लोग पूछिए की जितने भी बड़ी खाद आयातक और निर्माता कंपनियों हैं के पदाधिकारियों को यह व्यक्ति गाली -गलौज क्यों करता है और वरीय पदाधिकारी से भी यह व्यक्ति इन कंपनियों के पदाधिकारियों को उल्टा टांग के मारने की भी बात कहवा देता है |इन कंपनियों के अनुदान के bills को प्रति हस्ताक्छारित करवानें में अपने पैसे के खातिर तंग तबाह क्यों करता है |क्या यह ईमानदार है , अगर है तब क्या बांकी सभी लोग बेईमान हैं |

    ८.अभी ताज़ा उदाहरण यह है की ढैंचा बीज ख़रीदा गया है |यह बीज किसानों के बीच मुफ्त वितरण होना है |मुख्य मंत्री जी की अति महत्वाकांछी प्रोग्राम में green manuring की तहत बिहार की मिटटी की कृत्रिमता को कम करने के लिए यह बीज मुफ्त में किसानों को दिया जाना है |अररिया जिले में बीज आया है और मैंने स्वयं देखा है की १०० बीज में ७५-८० बीज ऐसे हैं जिनका germination ही नहीं होना है |क्या बीज ही ख़रीदा गया है या commercial variety के दाने |आप लोगों से अनुरोध है की इस विषय पर गहन खोज बीन करवाएं नहीं तो अति दुर्लभ PUBLIC FUND का maximum part देखेंगे की इन ईमानदारों के पाकेट में चला गया है |चला तो गया ही है , पाकेट से निकलवाने की कवायद करें |मेरे हिसाब से २५ करोड का वार -न्यारा हुआ है |

    1. गोयल जी, हमारी खबर पर टिप्पणी और ऊर्वरक के धंधे में बिहार में हो रही कालाबाजारी तथा भ्रष्टाचार के बारे में विस्तार में जानकारी के लिए आपका धन्यवाद. हम आगे भी आप से इसी तरह की सूचना और सहयोग की अपेक्षा करेंगे.

  2. श्री अजय झा जी,
    अभी अभी एक कृषि केबिनेट का गठन श्री नीतीशजी ने किया है |इसका इतना ज्यादा advertisement हो रहा है |इनके वक्तब्य सभी सुनने का बाद लगता है , की चलिए एक आदमी जो really concerned है फार्मिंग कम्युनिटी के उत्थान के बारे में |
    लेकिन क्या मुख्य मंत्री जी अपने आँखें बंद रखते हैं |मैं आपको पुरे जानकारी के और विश्वास के साथ कह रहा हूँ की जितना किसान -लुभावन बातें हो रहीं है ,उसके मुताबिक काम बिलकुल नहीं हो रहा है |इसको लिपा-पोती,लिफ़ाफ़े-बाज़ी वगैरह कहना बिलकुल नाजायज़ नहीं होगा|एक बिल्ली को दो बंदरों ने तराजू देकर कहा की हमारे रोटियों को बराबर बंटवारा कर दीजिए |बिल्ली तराजू लेकर बैठ गयी (इस मामले में बैठ गया )और दोनों बगल दोनों बन्दर बैठ गए |बिल्ली ने बराबर-बराबर हिस्सा करने के लिए रोटी तराजू के पलड़े पर चढा दी|लेकिन कभी एक पलड़ा झुकता था कभी दूसरा ,बिल्ली झुके हुए पलड़े पर से रोटी तोड़ कर खा लेती थी ,तबतक दूसरा पलड़ा झुक जाता था ,बिल्ली फिर इस पलड़े से रोटी तोड़ कर खा जाती थी,अंत में हुज़ूर यही हुआ, की भोले बन्दर भूखे रह गए और बिल्ली पेट भर खा कर चली गयी |तराजू भी वहीँ छोड़ कर चली गयी|
    मतलब सीधा है बिल्ली उसी प्रजाति की है जिस जाति से शेर आते है |यहाँ शेर या हिंदी पर्याय सिंह से मतलब है |शेर साहब सब कुछ खाकर चलते बनेंगे और नीतीशजी के भोले किसान देखते रह जायेंगे विश्वास न हो तो ढैंचा बीज आपके यहाँ भी ब्लाक में भेज दीजिए किसी को और स्वयं देखिये की प्रमाणित बीज की धज्जियाँ कैसे उड़ाई जाती है|लोग प्रमाणित शब्द पर ही विश्वास करना छोड़ देंगे |यह एक माफिया गिरोह बिहार के कृषि विभाग में जो नीतीशजी के हरेक कृषि मुत्तलिक बातों को खोखला कर देगा |क्रमशः …..

  3. अभी I have touched only tip of an ice-berg .There are many more facts to be revealed about the LION . Do you understan what does digital combination of 12 mean ,then 13 .Put 2 more closer to 1 and in the later digital combination put 3 closer to 1 . You then put a comma (,) between the two combinations . You will invent R , B . This is the combination which is working in this mighty department, headed by R at the helm and B at the acme in department .

  4. State sponsored black-marketing of fertilizers in Bihar owes its gargantuan dimension in the policy framed by one and a singular mind named as Sanjay Singh (deputy Director of Agriculture ,statistics but has been given charge of sole in-charge of Fertilizer Cell in the state).This man has been enjoying eye-candy status int the mind of 1st Mr. B. Rajendra ,IAS who was Diretcor of Agriculture since 2007 and continued to hold the chair till he was sent to Saaran as D>M> in the recent past.Then he has become a lovely child playing in the laps of Sri A.K. Sinha IAS,presnt Agriculture Production Commossioner ,Bihar.

    Now the person also makes dance many IAS and seniors as high in status as the Minister Mr. Narendra Singh in accordance to his tunes .The person is knowm in the department for sky-high knowledge of fertilizers,its marketing,distribution art as well as an authority on chemistry of fertilizers .

    Reality is this person is the most corrupt officer in the department who should be known for maverick he is and has rendered new heights in the history of corruption and synonyms like putrefaction ,decayment ,depravity,debasement,decomposition ,deterioration of the entire department surely in cullusion with the higher heirarchy and even the minister who has been providing unrelenting support to this person for a कमाऊपुत he is .

    Wild stories abound in the air of fertilizer marketing in Bihar .The District Agriculture officer ,total 38 in no. are taking Rs. 15/- per bag of 50 kg on Urea ,Potash and rs. 25/- per bag on DAP and phisphatic mixtures of big companies which are highly sunsidised by GOI .Can they do this without a hidden high level support .On hue and cry in the print media cases are filed ,all of them fail because of improper section imposition in a deliberate attempt of saving the wholesalers and lack of evidence , but to show to the people at large that there is governance ,but again in fact it is a Sicilian mafia form of government where a famous word OMERTA is still prevalent and the meaning is “conspiracy of silence”.

    To be continued…..

  5. sorry phosphatic has been spelt as phisphatic .Int in place of in in the fifth line,knowm in place of known in 2nd para 2 nd line ,there are some mistakes as > in place od dot in D M and rs, in place of Rs,

    I shall try to keep watch on such errors.

  6. महाशय ,

    मैं कम से कम दस बार माननीय मुख्य मंत्री जी के grievance cell में अपनी व्यथा के बारे में लिख चूका हूँ |

    हमारी एक औद्योगिक इकाई जिसका नाम हिमालय एग्रो केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड है विगत ३० सालों से कार्यरत थी |दिनांक १८.१२.२०१० से यह कारखाना कृषि विभाग ,बिहार द्वारा बंद करवाया जा चूका है |

    कृषि विभाग में कार्यरत एक पदाधिकारी जिसका नाम संजय सिंह है जिसकी मूल पदस्थापना कृषि विभाग के सांख्यिकी विभाग में है लेकिन इनको कतिपय कारणों से कृषि विभाग के राज्यस्तरीय उर्वरक कोषांग , का प्रभारी २००७ से ही बना दिया गया था जब श्री बी. राजेंद्र कृषि निदेशक थे |

    इनके अत्याचारों की कहानी इस प्रकार है :-

    १.इस कहानी की पहली कड़ी तो इसने २००७ में ही शुरू कर दी थी|

    २.कम शब्दों में कहना यह है की ९.०३.२०१० को ही हमलोगों ने (within specified time) अपने उर्वरक विनिर्माण और विपणन की अलग अलग अनुज्ञप्तियां के नवीनीकरण के लिए आवेदन कृषि विभाग को समर्पित कर दिया था|

    ३. २० मई २०१० को (करीब ७० दिनों पश्चात )कृषि निदेशक महोदय ने हमारे प्रतिष्ठान में स्थापित उर्वरक गुण विश्लेषण प्रयोगशाला की जांच करवाई |इस जांच दल में श्री बैद्यनाथ यादव ,तत्कालीन उप कृषि निदेशक (मीठापुर गुण नियंत्रण प्रयोगशाला ),श्री अशोक प्रसाद ,उप कृषि निदेशक (मुख्यालय ) थे |

    ४. इन लोगों ने अपने जांचोपरांत प्रतिवेदन में निम्नलिखित बातों को दर्शाया :-
    (क)प्रतिष्ठान में संचालित प्रयोगशाला में यन्त्र एवं उपकरण कार्यशील पाए गए |प्रयोगशाला में अपर्याप्त संख्या में यन्त्र और उपकरण पाया गया |प्रयोगशाला सीमित जांच सुविधा के साथ कार्यशील पाया गया |

    (ख)रसायनज्ञ कार्यरत है एवं उसे विश्लेषण कार्य की जानकारी है |

    (ग)विनिर्माण हेतु आधारभूत संरचना -उपलब्ध है तथा चालू हालत में है |

    ५.इसके अलावा यह भी कहा गया की प्रतिष्ठान में विनिर्माण इकाई में उत्पादित उर्वरक के प्रयोगशाला में गुणात्मक जांच सम्बन्धी अभिलेख आंकड़ा आदि संधारित नहीं पाया गया
    (ख)उर्वरक सम्बन्धी कच्चा माल स्थानीय थोक विक्रेता शिवनारायण चिरंजीलाल से मुख्य रूप से प्राप्त किये जाते हैं एवं उत्पादित उर्वरक का अधिक से अधिक हिस्सा इसी प्रतिष्ठान के माध्यम से बेचे जाते हैं |

    (ग)एन. पी. के.मिक्सचर विनिर्माण इकाइयों को कच्चा माल के रूप में उर्वरक आपूर्ति हेतु भारत सरकार से समय समय पर निर्गत निदेश और इससे सम्बंधित अद्यतन निदेश (२३०११ /१/२०१० -एम्.पी.आर. दिनांक ०४.०३.२०१० )जिससे वे अवगत हैं का अनुपालन नहीं किया जा रहा है |

    ६.इसी बीच दिनांक २०.०७.२०१० को कृषि निदेशक महोदय ने हमारा विनिर्माण / विपणन प्रमाण पत्र हेतु समर्पित आवेदनों को अस्वीकृत कर दिया और इस आदेश में यह भी दर्शाया की इस उनके आदेश के विरूद्ध ३० दिनों के अंदर हमलोग कृषि उत्पादन आयुक्त ,बिहार पटना के यहाँ अपील दायर कर सकते हैं |आदेश संख्या ८९८/२३.०७.२०१० .

    ७. हमलोगों ने विधिवत अपनी अपील कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ समर्पित ३०.०७.२०१० को ही कर दी|

    ८.कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ से ६० दिनों बाद अपील का आदेश प्राप्त हुआ जिसमे प्रमुख बातें इस प्रकार है :-

    “रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ,भारत सरकार के पत्र संख्या २३०११ दिनांक ४.०३.२०१० में यह स्पष्ट है की ‘manufacturers of custimsed fertilizers and mixture fertilizers will be eligible to source subsidised fertilizers from the manufacturers/importers after their receipt in the districts as input for manufacturing customised fertilisers and mixture fertilizers for agriculture purpose .’ इस पत्र से यह स्पष्ट होता है की मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को अनुदानित उर्वरक उपयोग करना की अनुमति है |राज्य के लिए आवंटित अनुदानित उर्वरक की आपूर्ति manufacturers /importers द्वारा की जाती है ,जिसका वितरण थोक विक्रेता के माध्यम से किया जाता है |राज्य को आवंटित अनुदानित उर्वरक के कोटा में से ही मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उर्वरक उपलब्ध कराया जाना है |मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अगर अतिरिक्त अनुदानित उर्वरक की आवश्यकता हो तो उसकी मांग निदेशक ,कृषि रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ,भारत सरकार से कर सकते हैं |सभी पहलू पर विचार करते हुए यह आदेश दिया जाता है की तत्काल जिले के लिए आवंटित उर्वरक के कुछ प्रतिशत जिला कृषि पदाधिकारी मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उपलब्ध करायेंगे ,इस हेतु निदेशक ,कृषि सम्बंधित जिला कृषि पदाधिकारी को आवश्यक निदेश देंगे |

    ‘कृषि मंत्रालय की अधिसूचना दिनांक १६.०४.१९९१ में यह स्पष्ट किया गया है की सभी एन.पी.के. मिश्रण विनिर्माताओं को अधिसूचना में उल्लेख किये गए न्यूनतम उपकरण को प्रयोगशाला में रखना ही होगा |

    ‘सभी तथ्यों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह आदेश दिया जाता है की अपीलकर्ता प्रयोगशाला में सभी न्यूनतम उपकरणों की व्यवस्था कर निदेशक ,कृषि को सूचित करेंगे |निदेशक,कृषि आवश्यक जांच कर संतुष्ट होने पर अपीलकर्ता के विनिर्माण प्रमाणपत्र को नवीकृत करेंगे |निदेशक,कृषि विनिर्माण प्रमाण पत्र निर्गत करते समय विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकृत करने पर भी विचार करेंगे |’
    (N.B. :- this is verbatim replication of the order of APC,Bihar dated 30.09.2010 bearing no.4964.This order bears the signature of Sri K.C. Saha while he held the charge of APC when Sri A.K.sinha had gone on a long leave. )

    ९. ३०.०९.२०१० को ही हमलोगों ने अपने प्रयोगशाला में सभी अनावश्यक(जिस उपकरण का आज के परिवेश में कोई मान्यता नहीं रह जाती है जैसे chemical Balance in place of electronic digital balance) /आवश्यक उपकरणों की खरीद कर instal कर देने सम्बन्धी पत्र निदेशक कृषि को पत्र द्वारा सूचित कर दिया और इसकी एक प्रति कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय को भी दे दी |

    १०.कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के इस आदेश को कतिपय कारणों से कृषि निदेशक महोदय को प्राप्त होने में काफी विलम्ब हुआ ,इसी कारण दिनांक २२.१०.२०१० को कृषि निदेशक महोदय के यहाँ से एक पत्र द्वारा त्रिसदस्सीय दल की गठन का आदेश निकला जिसको यह कहा गया की प्रतिष्ठान के प्रयोगशाला को पुनः जांच की जाये.|स्पष्ट है की कुछ सीढियों के अंतर पर ही ये दोनों कार्यालय नया सचिवालय ,पटना में है लेकिन” २२ “दिनों के बाद ही कृषि निदेशक महोदय प्रतिष्ठान के प्रयोगशाला सम्बन्धी जांच के आदेश दे पाए |

    ११. लेकिन यहाँ मात्र एक जांच सम्बन्धी आदेश को निकालने में २२ दिन लगे ,फिर २३.११.२०१०(याने इस जांच दल के गतःन होने के बाद ) को ही इस त्रिसदस्सीय जांच दल ने हमारे प्रतिष्ठान के प्रयोगशाळा की जांच की ,यानी एक महीने १ दिन बाद ही यह संभव हो पाया |स्पष्ट है की कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के ५३ वे दिन बाद हमारी प्रयोगशाला की जांच हो पायी|

    १२.इस जांच प्रतिवेदन में जांच दल ने निष्कर्ष में प्रतिवेदित किया की :-
    “उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ की धारा २१ (ए) के तहत उक्त प्रतिष्ठान के पास न्यूनतम प्रयोगशाला की सुविधा एवं उपरोक्त वर्णित उपकरण उपलब्ध हैं तथा उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ की धारा २१ (ए) का पूर्ण रूपेण पालन किया गया है |अतः उक्त प्रतिष्ठान के विनिर्माण पंजीकरण प्रमाण पत्र को नवीकरण करने हेतु विचार किया जा सकता है|”(this is again an exact replication of the report of findings of the three member inspecting team which is dated 23.11.2010).

    १३.हमलोगों ने २.११.२०१० से अपने इकाई का उत्पादन शुरू कर दिया था|इस आशय की सूचना विधिवत कृषि निदेशक महोदय को दे दी गयी थी | उत्पादन शुरू करने के मुख्य तीन कारण थे जो इस प्रकार हैं:-

    (क) कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के उपरांत कृषि निदेशालय द्वारा अनावश्यक विलम्ब हो रहा था ,फिर भी इस आदेश के १ महीने दो दिन बाद (यानी ३२ दिनों बाद )काफी इंतज़ार करने के बाद रबी सीजन के चालू हो जाने के आलोक में ,कृषकों के भी व्यापक हित में तथा मजदूर जो बहुत दिनों से बैठे हुए थे के कारण उत्पादन प्रारम्भ कृषि निदेशक को सूचित करते हुए कर दिया गया |
    (ख)कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश में यह दर्शाया गया है की “तत्काल जिले के लिए आवंटित उर्वरक के कुछ प्रतिशत जिला कृषि पदाधिकारी मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उपलब्ध कराएँगे “इससे यह स्पष्ट हो जाता है की उत्पादन चालु रखने के लिए ही ऐसे आदेश को पारित किया गया है |

    (ग)विनिर्माण और विपणन प्राधिकार पत्रों की नवीकरण का कृषि निदेशक महोदय द्वारा अस्वीकृत कर दिए जाने के उपरान्त कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश से अस्वीकृति का आदेश स्वतः विलोपित हो जाता है और उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ की धारा १८(४) जो इस प्रकार है :- “where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3),the applicant shall be deemed to have held a vaid {certificate of manufacture}until such date as the registering authority passes order on application for renewal .”इसी तरह विपणन प्राधिकार पत्र के बारे में धारा ११(४) है .इन धाराओं के तहत हमलोगों ने उत्पादन शुरू किया जो हमारी महीनों से बंद पड़े प्लांट जो उर्वरक के कारण जंग खा रहा था ,कृषकों को रबी सीजन में संतुलित दानेदार की उपलब्धता को बनाये रखने के लिए तथा भूखमरी की समस्या से ग्रसित मजदूरों को त्राण दिलवाने की मंशा से ऐसा कदम उठा कर कोई पाप नहीं किया गया था |यह उद्योग विगत ३० वर्षों से स्थापित है और हमारी अनुज्ञप्तियों की नवीनीकरण की प्रक्रिया कम से कम दस बार विभाग द्वारा पूर्व में भी अपनाई गयी है |

    १४.दिनांक १८.१२.२०१० को कृषि निदेशक महोदय ने एक आदेश निकाला की (जो जिला कृषि पदाधिकारी,अररिया के नाम से प्रेषित था )”आपको आदेश दिया जाता है की में.हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. की फारविसगंज एवं पूर्णिया इकाई को पत्र प्राप्ति के साथ ही जांच कर लें एवं यदि विनिर्माण कार्य चालू रहने एवं उर्वरक विपणन का साक्षय पाया जाता है तो प्रतिष्ठान के प्रोपराइटर एवं प्रबंधन के विरूद्ध उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड ७ एवं १२ का उल्लंघन करने के आरोप में आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा ७ के अंतर्गत साक्षय जुटाते हुए स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज कर दोनों संयंत्र को सील करने की त्वरित कार्रवाई करें|कृत कार्रवाईका प्रतिवेदन लौटती डाक से उपलब्ध कराया जाये|” इस सन्दर्भ में कृषि निदेशक का पत्र संख्या १४२७ दिनांक १५.१२.२०१० निर्गत हुआ है |

    १५.इसके उपरान्त दिनांक १८.१२ २०१० को जिला कृषि पदाधिकारी श्री बैद्यनाथ यादव ने परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी ,फारविसगंज श्री मक्केश्वर पासवान को आदेश देकर १८.१२.२०१० को ही सील करवा दिया और दिनांक १९.१२.२०१० को फारविसगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज करवा दी गयी |दर्ज प्राथमिकी की भाषा इस प्रकार है :-“उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में जिला कृषि पदाधिकारी ,अररिया के पत्रांक १०६५ दिनांक १८.१२ २०१० एवं कृषि निदेशक ,बिहार ,पटना के पत्र संख्या १४२७ दिनांक १५.१२.२०१० के द्वारा दिए गए निदेश के अनुपालन में में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. ,रानीगंज रोड ,फारविसगंज की जांच की गयी |जांच के समय फेक्ट्री बंद पायी गयी किन्तु भण्डार पंजी एवं वितरण पंजी के अवलोकन से ज्ञात होता है की फेक्ट्री में विनिर्माण कार्य कराया जाता रहा है |दिनांक १.१२.२०१० को मेरे द्वारा भण्डार पंजी एवं विक्री पंजी की जांच की गयी थी जिसमे विनिर्मित NPK धनवर्षा हरासोना १८:१८:१० भण्डार में कुल 105 of 50 kgs पाया गया था किन्तु दिनांक १८.१२.२०१० तक विनिर्मित NPK हरासोना १८:१८:१० ७४१५ बोरा ५०के.जी. विक्री दिखाया गया है इस प्रकार दिसंबर माह में कुल ७३१० बोरा ५० के.जी. का विनिर्माण में. हिमालय एग्रो केमिकल्स ,फारविसगंज द्वारा किया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड (७)एवं (१२) का उल्लंघन किया गया है जो की गैर कानूनी और अवैध है |
    अतः में. हिमालय एग्रो केमिकल्स ,रानीगंज रोड ,फारविसगंज के द्वारा वगैर लाइसेंस नवीकरण कराये विनिर्माण इकाई में विनिर्माण एवं बिक्री करने के आरोप में प्रतिष्ठान के प्रबंधक सह प्रबंध निदेशक श्री शम्भू गोयल पिता ओंकार मल अग्रवाल छुआ पट्टी रोड वार्ड न. १७ नगर परिषद ,फारविसगंज के विरूद्ध प्रथ्मिनकी दर्ज की जाती है”|यह कार्य दिनांक १९.१२.२०१० को करवाया जाता है |
    १६.इसी तरह हमारे पूर्णिया इकाई को भी बंद करवा दिया जाता है और १९.१२.२०१० को ही प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी |
    १७ कृषि निदेशालय में अनावश्यक विलम्ब हो रहा था इसका प्रमाण ऊपर अंकित विभिन्न तिथियों से स्वतः ज्ञात हो सकता है |संजय सिंह द्वारा इनकी बदनीयती से सृजित कथा का अंत यहीं नहीं होता है |हमलोगों ने इनलोगों के द्वारा अपनाई गयी प्रताड़ित करने की प्रक्रिया को देखते हुए माननीय उच्च न्यायालय में एक writ petition भी दिया था ,संजोग से जिसकी सुनवाई २०.१२.२०१० को हो गयी और उच्च न्यायलय द्वारा आदेश जो दिया गया वो इस प्रकार है :
    CWJC NO.20251 of 2010 :- “From the facts and circustances of this case , is quite apprent that the matter for renewal of Certificate of Registration for manufacturing and sale of Mixture of Fertilizers is pending before the Director,Agriculture ,Government of Bihar since 30.09.2010 when order passed by the Agriculture Production Commissioner ,Bihar in Appeal no. 7 of 2010 was communicated.
    3.Let the said matter be considered and disposed of by the Director,Agriculture within aperiod of three weeks from the date of receipt/production of a copy of this order.It may be noted that violation of this order shall entail serious consequences and will be deemed as contempt of court and this court shall be constrained to take actions against the contemnor .
    4.A copyof this order be handed over to Government Advocate IV for proper compliance of this order.”

    १८.हाई कोर्ट के इस आदेश के विभाग में पहुँचने के बाद महज एक खानापूर्ति करने के लिए दिनांक २७.१२.२०१० को एक पत्र जिसका पत्रांक १४७० दिनांक २७.१२.२०१० कृषि निदेशालय से हमारे नाम से स्पष्टीकरण मांगने के लिए प्रेषित किया जाता है जो इस प्रकार है :-
    “उपर्युक्त विषयक कहना है की कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश ज्ञापांक ४९६४ दिनांक ३०.०९.२०१० के आलोक में आपके प्रतिष्ठान के NPK मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी|इस बीच आपने अपने पत्र संख्या HAC –OUTLET CMD/10/235/01 दिनांक 22.11.2010 के द्वारा सूचित किया है की आपके द्वारा NPK मिश्रण का विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है |आप अवगत हैं की बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र विनिर्माण कार्य करना उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ का उल्लंघन है|आपके द्वारा बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र प्राप्त किया ही विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ का उल्लंघन है और आपका कृत उर्वरक नियंत्रण आदेश के विरूद्ध है तथा गैर कानूनी है |

    अतः आप स्पष्ट करें की उपरोक्त आरोप के आलोक में क्यों नहीं आपके प्रतिष्ठान का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आपसे प्राप्त आवेदन को उर्वरक नियंत्रण आदेश के खाद १८(२) के अंतर्गत अस्वीकृत कर दिया जाए |आप अपना स्पष्टीकरण दिनांक ०३.०१.२०११ तक अवश्य समर्पित करें अन्यथा एकतरफा निर्णय ले लिया जाएगा “ |
    (N.B. विभाग द्वारा स्वयं ही यह स्वीकार किया जा रहा है की हमारे मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के “नवीकरण “की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी |तब हमपर क्या नवीकरण की धाराओं के उल्लंघन में आरोप लगाना उचित होगा या की नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण की धाराओं के उल्लंघन का आरोप लगाना कहाँ तक उचित होता है |ऐसे भी यह एक गहन चिंता का विषय है की प्राथमिकी दर्ज करवाने के निमित्त पत्र में खंड १२ और ७ के उल्लंघन का उल्लेख है जबकि स्पष्टीकरण में खंड १८(२) के उल्लंघन का आरोप भी लगाया जा रहा है |
    एक सोची समझी हुई बदनीयती की तहत एक साजिश कर के प्राथमिकी के उपरान्त स्पष्टीकरण पूछने का एक ही तात्पर्य है की जिससे उच्च न्यायालय को पुख्ता जवाब दिया जा सके |ऐसे प्राथमिकी हो जाने के बाद ऐसे स्पष्टीकरण को कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है |
    संजय सिंह की मंशा तो शुरू से ही थी की रु. १० लाख मिलने के बाद ही नवीकरण किया जाएगा |यह गैर कानूनी उगाही न होते देख इस व्यक्ति ने अपनी सारी ताकत झोंक कर और एक खास बेईमानी की नियत से न सिर्फ विभाग का समय बर्बाद करवाया है ,इसके साथ सैकड़ों मजदूरों को भी बेरोजगार कर दिया है ,लाखों रुपैये की खाद को पानी में परिवर्तित होकर बह जाने की खास कोशिश की है |हमारी बर्बादी करना तो इसके जेहन में २००७ से समा गयी थी जब यह व्यक्ति उल्टा सीधा आदेश डा. बी. राजेंद्र जी से करवाना शुरू कर दिया था |पर बिहार में भारतीय प्रशासनिक सेवा के ऐसे पदाधिकारी उल्टा सीधा आदेश देते ही रहते हैं जिससे इनका प्रभुत्व कायम रहे ,भले ही जनता का नुकसान होते रहे ,कम से कम कोर्ट कचहरी के चक्कर में समय तो बर्बाद ये पदाधिकारी करवा ही देते हैं और इसी में इनको दीखता है अपना बांकपन ,अपनी शक्ति |इन लोगों को यह भी शर्म नही है की कोर्ट के आदेश किस कदर इनके मुहं पर तमाचा लगाते है |कोर्ट ने इनके और एक खास कृषि उत्पादन आयुक्त के ऐसे ही आदेश के विरूद्ध एक अन्य मामले में जो हमारे मामले से हूबहू मिलता जुलता है में टिप्पणी की थी वो इस प्रकार है :- CWJC 16645 of 2010 order dated 1.10.2010 – “It is evident from the impugned order that they suffer from non-application of mind to the requirements of the Fertilizer Control Order not only with respect to the facts of the case but also the requirement of law .
    “Once the petitioner had taken the stand that shortage of equipments in the laboratory was rectified,either the respondent authorities ought have accepted the same or they could have made inspection of the Laboratory to verify the statements made and thereafter appropriate orders should have been passed keeping in view the valuable rights of the petitioner involved in the matter .
    “On consideration of the entire facts and circumstances the order dated 4.06.2010 of the Director,Agriculture and 13.09.2010 of the Agriculture Production Commissioner are set aside and the matter is remanded to the Director ,Agriculture to consider the question of renewal of the registration certificate of the petitioner in accordance with law after considering the documents submitted by the petitioner and,if necessary by getting the inspection of the petitioner’s laboratory done by a team of competent Officers .

    “Let the application for renewal of the petioner be considered and disposed of within a period of three weeks from the date of receipt /production of a copy of this order.

    The writ petition is disposed of with the afore said observations and directions .”

    Sd/- Ramesh Kumar Dutta ,J.
    लेकिन शर्म तो इन प्रशासनिक पदाधिकारियों ने एक दानवी हैवान के पहलू में गिरवी रख दी है |इसका एक खास कारण यह भी है की ऐसे पदाधिकारिओं का मान बढ़ता है चोर और सिरफिरे राजनीतिज्ञों का प्रश्रय मिलने पर |और कम से कम आज के कृषि विभाग में ऐसा ही हो रहा है |

    १९.दिनांक २०.१२.२०१० के उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार हमारे अनुज्ञप्ति नवीकरण को नहीं करके कृषि निदेशक ने आदेश संख्या २५ दिनांक ७.०१.२०११ को हमारे आवेदन को पुनः अस्वीकृत कर दिया वह भी जब उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था की “matter for renewal of certificate of Registration for manufacture and sale of Mixture of fertilizers is pending before the Director,Agriculture ,Government of Bihar since 30.09.2010 when order passed by Agriculture Production Commissioner,Bihar in appeal no. 7 of 2010 was communicated “.

    कृषि निदेशक ने इस मद में एक आदेश निकाला जो दिनांक ६.०१.२०११ को दस्तखत किया गया और वह इस प्रकार है :-
    प्वाइंट नो. ६ .”प्रतिष्ठान से प्राप्त स्पस्टीकरण संतोषप्रद एवं स्वीकार्य नहीं है |प्रतिष्ठान की ओर से प्राप्त स्पस्टीकरण से स्पस्ट होता है की उनके द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १८(४)एवं ११(४)के अंतर्गत प्रतिष्ठान के विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र को वैध माना गया है |इस सम्बन्ध में उक्त दोनों खण्डों का उल्लेख करना समीचीन प्रतीत होता है |खंड १८(४) निम्नवत है :-
    “where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3),the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of manufacture until such date as the registering authority passes order on application for renewal “
    तथा ११(४) निम्नवत है :-
    “where the application for renewal of certificate of registration is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3),the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of registration until such date as the controller passes order on application for renewal”

    उपरोक्त दोनों खण्डों के अवलोकन से स्पष्ट है की नवीकरण हेतु लंबित विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र उस अवधि तक वैध है जब तक की पंजीकरण पदाधिकारी के द्वारा आदेश पारित नहीं कर दिया जाय |में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के मामले में प्रतिष्ठान का नवीकरण हेतु प्राप्त आवेदन अद्योहसताक्षरी के आदेश दिनांक २३.०७.१० के द्वारा अस्वीकृत किया जा चूका है |अतः उर्वरक नियत्रण आदेश १९८५ के खंड १८(४) एवं ११(४) के अनुसार दिनांक २३.०७.२०१० को प्रतिष्ठान के विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र की वैधता समाप्त हो चुकी है |
    प्वाइंट न..७ :-कृषि उत्पादन आयुक्त के द्वारा अपील -७/२०१० में पारित आदेश में कृषि निदेशक को निदेश दिया गया था की अपीलकर्ता के प्रयोगशाला में सभी न्यूनतम उपकरणों की जांच कर संतुष्ट होने पर अपीलकर्ता के विनिर्माण प्रमाण पत्र को नवीकृत करेंगे एवं इसे निर्गत करते समत विपणन प्राधिकार पत्र को नवीकृत करने पर विचार करेंगे |अपिलवाद के दिए गये आदेश के आलोक में प्रयोगशाला की सुविधा की जांच कर अग्रेतर कार्रवाही की जा रही थी |परन्तु इसी बीच में हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के द्वारा अनाधिकृत रूप से विनिर्माण एवं विपणन कार्य प्रारम्भ कर दिया गया जबकि अध्योहस्ताक्षरी के द्वारा कृषि निदेशालय के ज्ञापांक ८९८ दिनांक २३.०७.२०१० को संशोधन करने सम्बन्धी कोई भी आदेश निर्गत नहीं किया गया |इस परिस्थति में में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा.ली. के द्वारा किया गया विनिर्माण एवं विपणन कार्य बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र प्राप्त किये किया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ क्र खंड १२ एवं ७ का उल्लंघन है एवं जिसके लिए प्रतिष्ठान के विरूद्ध के. हाट थाना, पूर्णिया एवं फारविसगंज थाना ,अररिया में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है |

    प्वाइंट न. ८ :-उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है की में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के द्वारा विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के बिना उर्वरक मिश्रण का विनिर्माण एवं विपणन कार्य कर उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ एवं ७ का उल्लंघन किया गया है |प्रतिष्ठान के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश के उपरोक्त खंड को उल्लंघन करने के आरोप में दिनांक ३०.०९.२०१० को में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के द्वारा समर्पित विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आवेदन को अस्वीकृत किया जाता है |”

    N.B. कृषि निदेशक के इस आदेश से निम्न बातें साफ़-साफ़ स्पष्ट हो जाती हैं:-
    (क)हिमालय एग्रो केमिकल्स के इस मामले में उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के तहत खंड १२ एवं खंड ७ ही लागू होगा न की खंड १८(४) एवं ११(४)
    (ख)कृषि निदेशालय के उपर्वर्नित पत्राचार से यह भी साफ़ हो जाता है की यह मामला नवीकरण का न होकर नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण का ही होगा | जबकि यह भी सत्य है की यह फेक्ट्री विगत ३० वर्षों से कार्यरत है और १० बार इसकी अनुज्ञप्तियों का नवीकरण हो चूका है |इसका मतलब सीधा है की कृषि निदेशालय के अनुसार इन अनुज्ञप्तियों का स्वतः deregistration हो चुका है |भविष्य में हमारा पंजीकरण नए रूप में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है |होगा तभी जब इन लोगों को हम विधाता माने और इनकी पूजा अर्चना करें|
    (ग) यह भी साफ़ हो जाता है की कृषि निदेशालय में कृषि निदेशक श्री अरविंदर सिंह और संजय सिंह के मन में जो आएगा वो ये करेंगे और न उच्च न्यायालय का कोई आदेश इन लोगों पर लागू होता और न ही कृषि उत्पादन आयुक्त का, क्योंकि कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के बाद हमारी प्रयोगशाला में निर्धारित उपकरणों की व्यवस्था कर ली गयी है जिसकी सूचना हमलोगों ने ३०.०९.२०१० को ही दे दी थी,इनलोगों ने इस आदेश के ५३ वे दिन बाद ही हमारे प्रयोगशाला को जांच करवाया |
    (घ)इतना ही नहीं प्रयोगशाला के जांचोपरांत दिनांक २३.११,२०१० को जोविभाग द्वारा सम्भव हो पाया ,इस जांच प्रतिवेदन में साफ़ –साफ़ यह प्रतिवेदित है की उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ की धारा २१(ए) का प्रतिष्ठान द्वारा पूर्णरूपेण पालन कर लिया गया है ,के बाद भी २३ दिन बीत जाने के बाद याने १८.१२.२०१० तक भी नवीकरण करने की कोई प्रक्रिया सिर्फ विचाराधीन थी या यह कहा जाए की हमलोगों पर प्राथमिकी दर्ज और संयंत्र को सील करवाने की प्रक्रिया करने की जुगत में इन २३ दिनों में ये दोनों महानुभाव लगे हुए थे और अंततःइनलोगों ने एक हैवानियत का उदहारण देते हुए हमलोगों पर प्राथमिकी और संयंत्र को सील करवाने की प्रक्रिया को अंजाम दे ही दिया |यह है सुशासन |
    (ङ)यह भी स्पष्ट हो जाता है की इनलोगों पर कोई अंकुश नहीं है ,ये लोग अपने आप में एक सरकार है ,क्योंकि हमारी तरफ से दसियों बार कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय को इनके इतने असाधारण विलम्ब की सारी कारगुजारियों से अवगत करवाया जा चूका था तथा कृषि मंत्री महोदय को भी मैं स्वयं मिल कर इन कारनामों के बारे में कहा था|यह बतला देना यहाँ आवश्यक है की कृषि मंत्री महोदय से जब हमलोग मिलने गए तो कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह जी द्वारा यह कहा गया की “ये लोग(हमलोगों के बारे में) दो नंबर के आदमी हैं “ और विभाग ने कोई गलती नहीं की है |यह तो समय बताएगा की दो नंबर के लोग कौन हैं ,सिर्फ अपने NUISANCE VALUE के कारण कोई मंत्री पद प्राप्त कर लेता है तो वह आदमी स्वत एक नंबर का सदाचारी इंसान नहीं हो जाता , न ही ऐसे व्यक्ति को मंत्री पद प्राप्त होने के बाद यह कहने का हक मिल जाता है की वह किसी भी उद्यमी को दो नंबर का आदमी कहे |यह भी अत्यावश्यक है की अभी तक माननीय स्वर्गीय श्री अभय सिंह ,दिवंगत सदस्य ,बिहार विधान सभा ,के रहस्मयी मौत के बारे में अभी पर्दा उठाना बांकी है ,और सुशासन की पुरजोर कोशिश भी यही है की इस रहस्य को रहस्य बने रहने देना और जनता की स्मृति से जब यह बात विलुप्त हो जायेगी तब इस रहस्य को दफना देना है ,खास बात तो यह है की मंत्री महोदय के अपने चरित्र से ही नहीं अपनी सारी सांसारिक काया से दो नंबर की बू आती है और श्री अभय सिंह इन्ही के ज्येष्ठ पुत्र भी हैं|चना ,मसूर और खास कर ढैंचा बीज के खरीद में घोटाले का रहस्योदघाटन होना बांकी है |इन बीजों की खरीद में करोड़ों रूपैयों का घोटाला हुआ है जिसमे शीर्ष स्तर के राजनीतिग्य और पदाधिकारियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है |
    (च)कृषि निदेशालय के संजय सिंह के हैवानियत,निरंकुशता और बेशर्मियत का एक खास कारण यह भी है की कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के पद पर जिन्होनें रह कर हमारी सुनवाई की थी उनका नाम श्री के. सी. साहा है जो मात्र १५ से २० दिनों के लिए कृषि उत्पादन आयुक्त के रूप में इस कार्यभार को देख रहे थे |लेकिन श्री ए. के. सिन्हा जी के १५ से २० दिनों के अवकाश के बाद पुनः इन्होनें कृषि उत्पादन आयुक्त का प्रभार ग्रहण कर लिया |यह भी यहाँ बतला देना आवश्यक है की श्री ए.के.सिन्हा जी ने हमारे अपील को दो महीने तक टाला और कम से कम इन दो महीनों में ४ बार सुनवाई की तारीख को adjournment for next date करते रहे|इन्होनेंस्वयं अवकाश पर जाने के पहले अंतिम तारीख २९.०९.२०१० दी थी लेकिन ये २३.०९.२०१० से ही अवकाश पर चले गए थे |चूँकि श्री के.सी. साहा साहब कृषि उत्पाफ्दन आयुक्त के पदभार से मुक्त हो गए, तब संजय सिंह को congenial atmosphere मिल गया अपनी हैवानियत को मूर्त रूप देने में|इस बारे में की congenial atmosphere कैसे और क्यों बन गया , मेरे से ज्यादा आप समझ सकते हैं ,मुझे बतलाने की आवश्यकता नहीं है |
    हमारे विरूद्ध यह चक्व्यूह की संरचना में संजय सिंह जो अत्यंत दम्भी व्यक्ति है का हाथ है और सब से ज्यादा हैरानी की बात तो यह है की कुछ भा.प्र.से. के पदाधिकारी अपने आप में जब अपने आप को एक सरकार मान लेते हैं तो उनके आचरण और कार्यशैली से आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा ,वो जान बुझ कर अनभिग्य बने रहते हैं ऐसे निरंकुश कारनामों से वही आम जन दर दर की ठोकर,कोर्ट से विभाग,विभाग से कोर्ट फिरता रहता है ,और इसी से जन्म लेता है माओवाद, नक्सलवाद , और फिर सुशासन के तहत इस आम जन को सुशासित करने के लिए सुशासन के बाबुओं को एक सुसज्जित सेना का सहारा लेना पड़ता है | वाह रे !आपका सुशासन नितीश बाबु |
    २०. हैवानियत और निरंकुशता के साथ साथ उच्च न्यायालय के आदेश की अवमाननना का डर की एक कहानी जिसका रचयिता यही संजय सिंह है वो भी सुन लीजिए | कृषि निदेशालय से निर्गत कृषि निदेशक ,बिहार ने बिहार एग्रो इंडस्टीज,फारविसगंज (यह प्रतिष्ठान भी विगत ३५ वर्षों से कार्यरत है और दानेदार मिश्रित उर्वरक का उत्पादन करता है )को एक पत्र लिखा जो इस प्रकार है :-

    प्रेषक , पत्र संख्या १३२१ /२२.११.२०१०
    अरविंदर सिंह ,भा.व्.से.,
    कृषि निदेशक,बिहार |
    सेवामें ,
    जिला कृषि पदाधिकारी ,
    अररिया |

    विषय :- में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज,फारविसगंज के द्वारा पुनः उत्पादन कार्य शुरू किये जाने के सम्बन्ध में |

    महाशय ,
    उपर्युक्त विषयक प्रसंग में कहना है की में.बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज ,फारविसगंज ने CWJC16645/10 में पारित न्यायादेश के आलोक में पुनः उत्पादन कार्य शुरू करने की सूचना दी है |न्यायादेश के आलोक में प्रयोगशाला सुविधा की जांच की प्रक्रिया की जा रही है |कृषि निदेशालय से तदोपरांत समुचित आदेश पारित किया जाएगा |कृषि निदेशक के द्वारा जब तक विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण नहीं किया जाता है तब तक विनिर्माण कार प्रारम्भ करना उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १८ का उल्लंघन है और गैरकानूनी है|
    आप अपने स्तर से जांच कर न्यायसंगत कार्रवाई करना सुनिश्चित करें |
    ह. अरविंदर सिंह दिनांक २२.११.२०१० (मो. न. ९४३१८१८७०४)

    २१. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज ,फारविसगंज के मामले में जिला कृषि पदाधिकारी ,अररिया श्री बैद्यनाथ यादव ने दिनांक १०.१२.२०१० को पत्र संख्या १०३८ से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी अररिया को संबोधित करते हुए लिखा जो इस प्रकार है :-

    विषय :-मेसर्स बिहार एग्रो एजेंसीज ,फारविसगंज द्वारा कृषि निदेशक,बिहार,पटना के पत्र संख्या १३२१ दिनांक २२.११.२०१० में निहित निदेश का उल्लंघन कर पुनः उत्पादन कार्य प्रारंभ करने के सम्बन्ध में |
    प्रसंग:कृषि निदेशक, बिहार ,पटना का पत्र संख्या १३२१ दिनांक २२.११.२०१० |

    महाशय ,
    उपर्युक्त विषय के सम्बन्ध में कहना है की इस कार्यालय के पत्र संख्या १००२ दिनांक ३०.११.२०१० द्वारा आपको उपरोक्त निर्माता कंपनी को जांच करने का निदेश दिया गया था |
    कृषि निदेशक,बिहार पटना के विषय अंकित पत्र जिसकी प्रति विनिर्माता इकाई को भी दी गयी है में निहित निदेश की उन्हें विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण होने तक ,विनिर्माण कार्य पुनः आरम्भ नहीं करना है ,ऐसा करने से उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ का खंड (१८) का उल्लंघन होगा एवं गैरकानूनी भी है |
    कृषि निदेशक,बिहार पटना के इस निदेश के बाउजूद भी सम्बंधित विनिर्माता कंपनी के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश का उल्लंघन कर विनिर्माण कार्य किया जा रहा है |
    अतः आपको निदेश दिया जाता है की अविलम्ब निम्नांकित कार्रवाई करना सुनिश्चित करें:-
    (i)विनिर्माण इकाई में विनिर्माण कार्य में रोक लगा दें |
    (ii)विनिर्मित सामग्री एवं कच्चा माल का जब्ती सूची तैयार कर निर्मित सामग्री का नमूना संग्रह कर प्रयोगशाला में भेजें |
    (iii)कच्चा माल कहाँ से प्राप्त किया गया है उसका स्त्रोत्र प्राप्त कर साक्षय तैयार कर कार्रवाई करें |
    (iv)कृषि निदेशक ,बिहार,पटना के प्रासंगिक पत्र के आलोक में अवैध निर्माण कार्य करने के कारण उर्वरक नियंत्रण आदेश १८९५ खंड (१८) का उल्लंघन करने के आरोप में स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज करें |आवश्यकतानुसार स्थानीय थाना एवं अनुमंडल पदाधिकारी फारविसगंज का सहयोग प्राप्त कर कृत कार्रवाई से अध्योहस्ताक्षरी एवं कृषि निदेशक ,बिहार,पटना को भी अवगत करें |
    ह. बैद्यनाथ यादव ,जिला कृषि पदाधिकारी |

    २२. इसके उपरांत दिनांक १२.१२.२०१० को पत्रांक संख्या १५३ से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी ,फारविसगंज श्री मक्केश्वर पासवान ने स्थानीय थाना फा

  7. २०. हैवानियत और निरंकुशता के साथ साथ उच्च न्यायालय के आदेश की अवमाननना का डर की एक कहानी जिसका रचयिता यही संजय सिंह है वो भी सुन लीजिए | कृषि निदेशालय से निर्गत कृषि निदेशक ,बिहार ने बिहार एग्रो इंडस्टीज,फारविसगंज (यह प्रतिष्ठान भी विगत ३५ वर्षों से कार्यरत है और दानेदार मिश्रित उर्वरक का उत्पादन करता है )को एक पत्र लिखा जो इस प्रकार है :-

    प्रेषक , पत्र संख्या १३२१ /२२.११.२०१०
    अरविंदर सिंह ,भा.व्.से.,
    कृषि निदेशक,बिहार |
    सेवामें ,
    जिला कृषि पदाधिकारी ,
    अररिया |

    विषय :- में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज,फारविसगंज के द्वारा पुनः उत्पादन कार्य शुरू किये जाने के सम्बन्ध में |

    महाशय ,
    उपर्युक्त विषयक प्रसंग में कहना है की में.बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज ,फारविसगंज ने CWJC16645/10 में पारित न्यायादेश के आलोक में पुनः उत्पादन कार्य शुरू करने की सूचना दी है |न्यायादेश के आलोक में प्रयोगशाला सुविधा की जांच की प्रक्रिया की जा रही है |कृषि निदेशालय से तदोपरांत समुचित आदेश पारित किया जाएगा |कृषि निदेशक के द्वारा जब तक विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण नहीं किया जाता है तब तक विनिर्माण कार प्रारम्भ करना उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १८ का उल्लंघन है और गैरकानूनी है|
    आप अपने स्तर से जांच कर न्यायसंगत कार्रवाई करना सुनिश्चित करें |
    ह. अरविंदर सिंह दिनांक २२.११.२०१० (मो. न. ९४३१८१८७०४)

    २१. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज ,फारविसगंज के मामले में जिला कृषि पदाधिकारी ,अररिया श्री बैद्यनाथ यादव ने दिनांक १०.१२.२०१० को पत्र संख्या १०३८ से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी अररिया को संबोधित करते हुए लिखा जो इस प्रकार है :-

    विषय :-मेसर्स बिहार एग्रो एजेंसीज ,फारविसगंज द्वारा कृषि निदेशक,बिहार,पटना के पत्र संख्या १३२१ दिनांक २२.११.२०१० में निहित निदेश का उल्लंघन कर पुनः उत्पादन कार्य प्रारंभ करने के सम्बन्ध में |
    प्रसंग:कृषि निदेशक, बिहार ,पटना का पत्र संख्या १३२१ दिनांक २२.११.२०१० |

    महाशय ,
    उपर्युक्त विषय के सम्बन्ध में कहना है की इस कार्यालय के पत्र संख्या १००२ दिनांक ३०.११.२०१० द्वारा आपको उपरोक्त निर्माता कंपनी को जांच करने का निदेश दिया गया था |
    कृषि निदेशक,बिहार पटना के विषय अंकित पत्र जिसकी प्रति विनिर्माता इकाई को भी दी गयी है में निहित निदेश की उन्हें विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण होने तक ,विनिर्माण कार्य पुनः आरम्भ नहीं करना है ,ऐसा करने से उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ का खंड (१८) का उल्लंघन होगा एवं गैरकानूनी भी है |
    कृषि निदेशक,बिहार पटना के इस निदेश के बाउजूद भी सम्बंधित विनिर्माता कंपनी के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश का उल्लंघन कर विनिर्माण कार्य किया जा रहा है |
    अतः आपको निदेश दिया जाता है की अविलम्ब निम्नांकित कार्रवाई करना सुनिश्चित करें:-
    (i)विनिर्माण इकाई में विनिर्माण कार्य में रोक लगा दें |
    (ii)विनिर्मित सामग्री एवं कच्चा माल का जब्ती सूची तैयार कर निर्मित सामग्री का नमूना संग्रह कर प्रयोगशाला में भेजें |
    (iii)कच्चा माल कहाँ से प्राप्त किया गया है उसका स्त्रोत्र प्राप्त कर साक्षय तैयार कर कार्रवाई करें |
    (iv)कृषि निदेशक ,बिहार,पटना के प्रासंगिक पत्र के आलोक में अवैध निर्माण कार्य करने के कारण उर्वरक नियंत्रण आदेश १८९५ खंड (१८) का उल्लंघन करने के आरोप में स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज करें |आवश्यकतानुसार स्थानीय थाना एवं अनुमंडल पदाधिकारी फारविसगंज का सहयोग प्राप्त कर कृत कार्रवाई से अध्योहस्ताक्षरी एवं कृषि निदेशक ,बिहार,पटना को भी अवगत करें |
    ह. बैद्यनाथ यादव ,जिला कृषि पदाधिकारी |

    २२. इसके उपरांत दिनांक १२.१२.२०१० को पत्रांक संख्या १५३ से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी ,फारविसगंज श्री मक्केश्वर पासवान ने स्थानीय थाना फारविसगंज में बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज पर प्राथमिकी दर्ज कराते हुए इस फेक्ट्री को भी सील कर दिया |
    २३.अचानक तारीख २३.१२. २०१० को इस फेक्ट्री मालिक श्री अभय दूगड को भी स्पष्टीकरण पूछा जाता है जिसमे कृषि निदेशक कार्यालय का पत्रांक १४६० अंकित है वो इस प्रकार है:-
    “प्वाइंट न. २ उपरोक्त से स्पष्ट है की आपके द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ का उल्लंघन करते हुए विनिर्माण प्रमाण पत्र के नवीकरण के बिना विनिर्माण कार्य किया जा रहा है जो गैरकानूनी है |उल्लेखनीय है की इस क्रम में आपके विरूद्ध फारविसगंज थाना में वाद सं.४८९/१० दिनांक १२.१२.२०१० भी दर्ज किया गया है |
    प्वाइंट न.२ आप स्पष्ट करें की उपरोक्त आरोप के आलोक में क्यों नहीं आपके प्रतिष्ठान का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु प्राप्त आवेदन को उर्वरक नियंत्रण आदेश के खंड १८ (२) के अंतर्गत अस्वीकृत कर दिया जाए |आप अपना स्पष्टीकरण दिनांक २८.१२.२०१० तक अवश्य समर्पित करें अन्यथा एकतरफा निर्णय ले लिया जाएगा |”

    २४. फिर अचानक ६.०१.२०११ को कृषि निदेशक ,कार्यालय से एक आदेश निकलता है जिसकी आदेश संख्या २० दिनांक ६.०१.२०११ है वो इस प्रकार है :-
    प्वाइंट न. २ :-“ माननिय उच्च न्यायलय ,पटना के आदेश के आलोक में में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज के प्रयोगशाला का जांच प्रतिवेदन एवं उपलब्ध अभिलेखों के आलोक में में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र का नवीकरण करने का निर्णय लिया जाता है एवं बिहार एगो इंडस्ट्रीज को सील मुक्त किया जाता है |”
    कृषि निदेशक ,बिहार,पटना द्वारा इस तरह से हुबहू एक ही तरह के आरोप में एक फेक्ट्री को सील मुक्त एवं उनकी अनुज्ञप्तियों को नवीकरण करने का निर्णय ले लिया जाता है और
    इसी तारीख को हमारी फेक्ट्री के अनुज्ञप्तियों के नवीकरण की प्रक्रिया को स्थगित कर दी जाती है और नवीकरण अस्वीकृत कर दिया जाता है जिसके बारे में निर्गत आदेश संख्या २५ दिनांक ७.०१.२०११ का वर्णन हमारे इस प्रतिवेदन के प्वाइंट न. १९ पर वर्णित है |

    कितना अभूतपूर्व उदहारण पेश किया गया है सुशासन का |

    २५.इसी संजय सिंह की हैवानियत का वर्णन आपने सुन ही लिया |अब देखिये की यही शख्स दिनांक ११.१.२०११ को उच्च न्यायालय से माफ़ी मांगता है जिसका वर्णन इसने अपने ही अपने शपथ-पत्र द्वारा इस प्रकार किया है :-

    Most Respectfully sheweth :-

    1.That the deponent offer unconditional and unqualified apology for any inconvenience caused to the Hon’ble High Court in the due administration of Justice.
    2.That the deponent has a great respect for law as well as the Hon’ble courtand he cannot think to go against the slightest observation made by the Hon’ble Court .
    3.That the deponent is duty bound to comply each and every words of Hon’ble High Court in the same spirit in accordance with law .
    4.That at the outset it is informed that the certificate of manufacture and letter of authorisation of M/S Bihar Agro Industries have been renewed on 7.01.2011 .An unqualified and unconditional apology is being tendered for the procedural delay in comply with the matter —-A photo copy of renewed certificate of manufacture and letter of authorisation is annexed herewith and marked as annexure 1 series to this show-cause
    And thus are point 5 ,6,7,8 and 9 .
    अब आप समझ सकते हैं आपके विभागों के पदाधिकारियों की हैवानियत की करतूतें और कोर्ट के डर से इनके भींगी बिल्ली बन जाने का तरीका.
    जो भी हो इस व्यक्ति संजय सिंह ने ८ महीने तक इस फेक्ट्री और हमारी फेक्ट्री को १० महीने तक घोर अपराधिक षड्यंत्र कर के बंद करवा दिया |सहज अनुमान लगाया जा सकता है की हमलोगों का जो नुकसान हुआ वो तो हुआ ही ,पर हमारी प्रतिष्ठा पर भी इस हैवान द्वारा कुठाराघात किया गया |आज तक सैकडो मजदूर बेरोजगार बैठे हुए हैं |लाखों की खाद पानी होकर बह चुकी है |३५ नियमित कामगार भाग चुके हैं |लाखों रुपैया जो राजस्व के रूप में राज्य सरकार और केंद्रीय सरकार को दिया जाता था ,ऐसी सभी व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी है |बैंकों के कर्ज पर व्याज अनावश्यक बढ़ रहा है | लाखों की प्लांट और मशीनरी जंग खा रही है और बेकाम हो गयी है |

    कैसा सुन्दर उदहारण है सुशासन का यह अनुमान लगाया जा सकता है |

    २६. इसी संजय सिंह ने ७ लाख ३० हज़ार रुपैया बिहार एगो इंडस्ट्रीज से लेकर इनके कारखाने को इतनी प्रताडना देने के बाद भी आखिर लिया और तभी चालु या अनुज्ञप्ति नवीकरण का आदेश कृषि निदेशक से दिलवाया |हमलोगों से इसकी मंशा १० लाख रुपैया लेने की थी |इस व्यक्ति ने तारीख २६.११.२०१० से लेकर १३.१२.२०१० तक बार बार तरह तरह के लोगों से हमेशा हमारे ऊपर दबाव बनाया की १० लाख रुपैया इनको दे दें नहीं तो अनुज्ञप्तियों को कभी भी नवीकृत नहीं किया जाएगा और यह भी धमकी दिलवाते रहा की समय रहते पैसा नहीं मिलेगा तो आगे क्या क्या होगा उसका हमलोगों को भुक्तभोगी होना पड़ेगा |
    इसकी इस नाजायज़ पैसे की मंशा पूरी नहीं होते देख इस हैवान ने गैरकानूनी तरीके से आखिरकार हमारी फेक्ट्री को १८.१२.२०१० को सील करवा दिया और प्राथमिकी दर्ज करवा ही दी |

    २७.यहीं पर फिर सिलसिला खत्म नहीं होता है |हमलोगों ने इस अन्याय के खिलाफ फिर उच्च न्यायालय में एक I.A. याचिका दी और इस याचिका की सुनवाई २७.०१.२०११ को हुई और आदेश जो निकला वो इस प्रकार है:-
    Point no.11- From the facts and circumstances of this case as well as order of the authorities (annexure 3 &4),it is quite apprent that the authorities as well as the petitioner had taken steps as per clause 32 and 32 A according to which the appeal was filed by the petitioner himself which was entertained by the appellate authority .The impugned order is in continuation of the said battle and hence,the corse of appeal being available to the petitioner ,there is no occasion for this court to entertain this writ petition .Accordingly this writ petition is disposed of with a liberty to the petitioner to challenge the impugned order of the Director (Agriculture)before the Agriculture Production Commissioner under the aforesaid provisions raising all the points that he raised here and the said appellate authority will decide the same in accordance with law considering the provisions of law as well as the decision of this court in similar matters .If the petitioner files an appeal within 15 days from today ,the appellate authority shall decide the same expeditiously preferably within aperiod of 6 weeks from the date of filing of the appeal …sd/- (S.N. Hussain ,J)

    २८.हमलोगों ने फिर कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ अपील कर दी |लेकिन एक बड़ा ही रोमांचकारी तथ्य सामने आया |५ सप्ताह बीत जाने के बाद इसी संजय ने फाइल पर एक नोटिंग बना कर यह लिखा की २००३ में ही एक कृषि विभाग का प्रशासनिक आदेश निकला हुआ है जिसमे निदेशक कृषि के आदेश के खिलाफ अपील सचिव (कृषि ) को ही सुनना है |इसलिए सचिव (कृषि ) ही इस मामले को सुने |सचिव(कृषि) ने भी इसकी सुनवाई हेतु इसी फाइल में अपनी हामी भर दी |और १२.३.२०११ को हमारी सुनवाई हो गयी जिसका आदेश २१.३.२०११ को प्राप्त हुआ जो स्वयं एक सुशासन का अपने आप में एक नमूना है ,वो इस प्रकार है :-

    Point no. 4 . 11 . It would not be out of place to state that the petitioner contends that this case was similar to that of Bihar Agro Industries ,Forbesganj ,whose licence has been renewed on 6 th January 2011.
    Point no.5.1 The respondents basic contention is that the appellant in wilful disobedience of the Order of the Agriculture Production Commissioner dated 30.09.2010(as written in the order it is 30.09.2011)wherein mandatory laboratory equipments were to be obtained and inspection conducted to the satisfaction of the licensing authority.The appellant thus violated the basic condition of licensing as laid down under clause 7 &12 of the Fertilizer Control order 1985 .
    Point no. 5.2.The respondents aslo state that the laboratory equipments available was insufficient thus the appellant failed to fulfill the NECESSARY AND MANDATORY ORDER OF THE AGRICULTURE PRODUCTION COMMISSIONER .

    On careful consideration of the argument of both the sides it is apprent that the bone of contention is whether the petitioner was lawful in initiating production without waiting for renewal of licence vide clause 18(4)and 11(4)or the licensing authority is competent in enforcing clause 7 and 12 of the fertilizer control order 1985 .
    In my view of the matter on a reading the bare control order I find the petitioner seriously deficient in not waiting for a renewal order to be passed by the licensing authority where he had waited since March 2010 another month or so wouldn’t have made any difference.Further more the order of the Appellate Authority was not absolute rather conditional which presupposed the satisfaction of the Licensing authority before start of production .The petitioner clearly failed to interpret the order in the spirit it was delivered rather he became impatient and controverted the order thereby contravening the provisions of clause 7 & 12 of the fertilizer control order 1985 .
    Hence in the light of the above ,I, appellate authority (vide notification dated 18.8.2003 )hereby dismiss the appeal and uphold the order of the learned licensing authority passed on 7.01.2011. sd/- C.K. Anil

    अब आप देख सकते हैं की बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज और हमारा matter एक ही हैं यह हमने अपनी अपील में सारे कागजातों के साथ लिख कर दिया |सारे ३ पन्नों के इस आदेश में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है की हमलोगों का कथन की दोनों फेक्ट्रियों का मामला एक ही जैसा है ,यह कथन सही है या नहीं |
    शायद जिक्र इसलिए नहीं है क्योंकि मामला एक ही जैसा है और एक को लाइसेंस दिया जाता है और दुसरे को और फंसाया जाता है चूँकि इस सच्चाई के विरूद्ध विभाग पूर्णतया नंगा है |

    प्वाइंट नो.५. १. |बात समझ के बाहर है क्योंकि त्रिसदस्सीय पदाधिकारियों के दल द्वारा प्रयोगशाला की जांच बहुत पहले २३.११.२०१० को ही कर ली गयी थी और इस जांच दल का जांच प्रतिवेदन बड़ा स्पष्ट है जो ऊपर mention किया हुआ है |
    शायद मांगे गयी राशि (दस लाख रुपैया )नहीं दिया गया था इसलिए यह बात सामने आई की inspection was not conducted according to the satisfaction of the licensing authority.

    प्रयोगशाला में धारा २१ (ए) में निहित उपकरणों का type और कितनी मात्र में ये उपकरण रखे जाने है , इसके अलावा और कोई शर्त अलावा इसके की १० लाख रुपैये की मांग संजय सिंह द्वारा की गयी थी ,और कोई कानूनी प्रावधान हमल्गों के समझ के बाहर है |

    सचिव (कृषि ) द्वारा यह लिखा जाना की “if the petitioner would have waited for one month or so when he had waited since March 2010 wouldn’t have made any difference “ क्या इस बात से यह नहीं लगता है की इस मामले में कुछ भी आरोप जो विभाग ने लगा कर हमारे साथ एक क्रूर खेल खेला है ,वो कोई आरोप ही नहीं है ,सिर्फ हमलोगों को जरूरत थी की इन विधाताओं को खुश रखने की, एक महीना और बिना फेक्ट्री चलाये हमलोग रहते तो ये विधाताओं का मान बना रहता या हमलोग भी बिहार एग्रो की तरह तंग आकार इनकी जेबों को भर देते याने १० लाख रुपैया दे देते तो सब कुछ ठीक था ,तब यही कानून बदल जाता |

    आज के दिन भी हमारा उत्पादन बंद है |सैंकडो मजदूर बेरोजगार हो गए हैं ,बैंकों का लाखों रुपियों का व्याज देना पड़ रहा है और करीब १५ लाख रुपियों की खाद पानी होकर बह चुकीं है |इस संजय जनित क्रूरता के कारण मेरे पिता मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गए हैं जो ८० वर्ष के हैं |

    अगर हो सके तो पुरे मामले की जांच करवा ली जाए और न्याय दिलवाने की व्यवस्था की जाए.

    आपका
    शम्भू गोयल
    मेनेजिंग डाइरेक्टर,
    हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली.
    फारविसगंज (अररिया )

  8. शम्भू गोयल जी मैं आपकी व्यथा समझ सकता हूं| यह जो आपके साथ अन्याय हो रहा है भले ही नामित भ्रष्ट व्यक्तियों के कारण है लेकिन दूर बैठा मैं विशालदर्शी दृश्य देख रहा हूं| स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात से ही शासन के सभी वर्गों में मध्यमता और अयोग्यता की जगह अब सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता ने ले ली है| इस सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता रूपी भड़मानस द्वारा काटे सभी छोटे बड़े लोग भड़मानस बने औरों को काटने में लगे हुए हैं| यदि अब तक न्यायलय में कोई भलामानस न्यायधीश आपकी और बेरोजगार मजदूरों की दुविधा को समझ आपके पक्ष में निर्णय दे चुका है तो बहुत अच्छा है वरना धीरे धीरे भारतीय समाज से लोप हो रहे न्याय ओर नैतिकता देश को नष्ट कर देंगे|

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