कृषि मंत्री शरद पवार ने नई दिल्ली में कहा कि कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उर्वरक उत्पादन को वर्तमान स्तर 21 मि. टन से बढ़ा कर 35 मिलियन टन प्रति वर्ष करने की जरूरत है.
“यह अनुमान है कि देश में वर्ष 2025 तक की बढ़ती आबादी के भरण-पोषण के लिए 300 मिलियन टन तक खाद्यान्न के उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरक की आवश्यकता होगी” श्री पवार ने नई दिल्ली में एक खरीफ सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा.
पवार ने कहा कि 8-10 लाख टन उर्वरक की आपूर्ति जैविक स्रोतों से की जा सकती है, बाकी के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहना पड़ेगा.
“इसका मतलब है कि उर्वरकों की घरेलू आपूर्ति को वर्तमान 21 मि. टन से बढ़ाकर 35 मिलियन टन प्रति वर्ष तक करने की जरूरत है,” उन्होंने कहा.
कृषि मंत्रालय के तीसरे संशोधित अनुमान के अनुसार 2010-11 में देश में खाद्यान्न का उत्पादन 235.88 मि.टन तक होने का अनुमान है .
फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए उर्वरक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पवार ने कहा कि हरित क्रांति के बाद के दौर में कृषि उत्पादन में जो वृद्धि हुई है उसमें आधा योगदान अकेले उर्वरकों के उपयोग का है.
मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि रासायनिक उर्वरकों की कमी को पूरा करने के लिए जैविक उर्वरकों के स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है.
भारत में 85 प्रतिशत यूरिया की आवश्यकता की पूर्ति घरेलू उत्पादन से हो जाती है, लेकिन फॉस्फोरस और पोटेशियम की जरूरतों को पूरा करने के लिए मोटे तौर पर आयात पर निर्भर रहना पड़्ता है.
देश का सबसे बड़ा उर्वरक उत्पादक इफको है, जो एक बहु राज्य सहकारी समिति है जिसके तहत लगभग 40 हजार समितियां काम करतीं हैं. पवार के सुझाव पर टिप्पणी के लिए इफको के प्रबंध निदेशक श्री उदय शंकर अवस्थी से संपर्क करने का प्रयास विफल रहा क्योंकि वह शहर से में नहीं थे.