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निर्भरता सिंड्रोम से मुक्ति : शरद पवार

बुधवार को राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के सहकारी मंत्रियों का सम्मेलन हुआ जिसमें सर्वसम्मति से संकल्प लिया गया कि सहकारी क्षेत्र को पुनः सशक्त बनाने के लिए तत्काल कदम उठाया जाएगा क्योंकि इस क्षेत्र को एक ओर तो कड़ी प्रतिस्पर्धा की चुनौती का सामना करना पड़ रहा और दूसरी ओर सरकार का रुख भी सहयोगात्मक नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2012 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है.  यह सम्मेलन इसी पृष्ठभूमि में आयोजित किया गया था.

सम्मेलन में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, उड़ीसा, पांडिचेरी, राजस्थान और त्रिपुरा के राज्य सहकारिता मंत्रियों ने भाग लिया.

सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता के बहुमूल्य योग्दान का उल्लेख किया गया, जैसे- ग्रामीण ऋण, कृषि इनपुट और उत्पादन, कृषि प्रसंस्करण, भंडारण, विपणन, उपभोक्ता, उर्वरक, डेयरी, मछली पालन, आवास, आदि.

सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि जब तक सहकारिता अपने आंतरिक ताकत का विकास नहीं करती, वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में इसके विकास में कठिनाइयां आएंगी.

उनका यह भी विचार है कि सहकारी समितियों को अनिवार्य रूप से एक आर्थिक उद्यम की तरह समझना चाहिए जिसमें सदस्यों की भागीदारी की महत्ता हो.  श्री शरद पवार ने राज्य के मंत्रियों को बताया कि भारत सरकार ने सहकारी समितियों के सुधार के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं जिससे कि वे जीवंत, व्यवहार्य और लोकतांत्रिक संस्थान बन सकें तथा सदस्यों की सक्रिय भागीदारी से वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धी  चुनौतियों का सामना कर सकें.

कृषि सचिव श्री पी.के. बसु ने सहकारी समितियों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों के बारे में सम्मेलन को जानकारी दी और सहकारी क्षेत्र में लोगों के विश्वास को बहाल करने की जरूरत पर बल दिया.

राज्य के सहकारिता मंत्रियों ने सहकारिता क्षेत्र के सुधार के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का समर्थन किया.  उन्होंने आश्वासन दिया कि राज्य सरकारें सहकारी समितियों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगी जिससे कि समितियां अपने सदस्यों की प्रभावशाली ढंग से सेवा कर सकें.

सम्मेलन में एक सर्वसम्मत विचार उभरा कि सरकार समुचित कानूनी और नीतिगत सुधारों के माध्यम से सहकारिता को निरंतर समर्थन दे जिससे कि सहकारी समितियों को स्वायत्तता प्राप्त हो सके और वे एक सदस्य प्रधान संस्थान बन सकें.

देश में सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने की दृष्टि से सम्मेलन में सर्वसम्मति से निम्नलिखित क्षेत्रों में कार्रवाई करने के लिए संकल्प पारित हुआ: –

(i) केन्द्र और राज्य सरकारें संविधान (111वां संशोधन) विधेयक, 2009 को जल्दी से जल्दी पारित कराने के लिए कदम उठाएंगी.
(ii) सहकारिता पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों की तर्ज पर कानूनी, संस्थागत और प्रणालीगत सुधार लाने के लिए राज्य कदम उठाएं.
(iii) राज्य अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना हेतु पुनरुद्धार पैकेज लागू करने की गति को तेज करने के लिए कदम उठाए जिससे कि किसानों को ऋण आबंटन की गति तेज हो सके.
(iv) केन्द्र और राज्य सरकारें उपयुक्त संस्थागत तंत्र का गठन करेंगी जिससे बीमार सहकारी समितियों का पुनरुद्धार और पुनर्वास हो सके.
(v) सहकारी क्षेत्र को मजबूत और पुनर्जीवित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें, सहकारी संस्थान और अन्य हितधारक अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2012 में विभिन्न उपायों के लिए मिल कर काम करेंगे.
(vi) राज्य सूक्ष्म वित्त संस्थाओं और संयुक्त देयता समूह के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए अनुकूल माहौल पैदा करेंगे जिससे किसानों को संस्थागत ऋण की उपलब्धि का विस्तार हो सके.
(vii) सहकारी समितियों को आयकर के दायरे से मुक्त करने पर विचार करने के लिए वित्त मंत्रालय से अनुरोध किया जा सकता है.
सहकारिता की विश्वसनीयता और गरिमा को बहाल करने की प्रतिज्ञा के साथ सम्मेलन सम्पन्न हुआ, ताकि सहकारिता स्वायत्त, आत्मनिर्भर, लोकतांत्रिक और सदस्यों के प्रति जवाबदेह बन सके और अपने सदस्यों तथा अन्य हितधारकों की अपेक्षाओं को पूरा कर सके.
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