दिल्ली उच्च न्यायालय ने सहकारी सोसायटी के रजिस्ट्रार (आरसीएस) को एक मामले में फटकार लगाई है. रजिस्ट्रार ने फ्लैटों के ड्रा निकालने में पाँच वर्षों का विलम्ब कर दिया. दस्तावेजों के सत्यापन के बाद भी एक हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों की सूची डीडीए को नहीं भेजी गई.
“एक बार जब कानूनी स्थिति स्पष्ट हो गई थी, आर.सी.एस. को स्वेच्छा से नामों की सूची डी.डी.ए. को भेज देना चाहिए था”; न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा.
अदालत ने आरसीएस से कहा कि ड्रा निकालने के लिए वह 10 दिनों के भीतर सदस्यों के नाम दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को भेज दे. इसके अलावा अदालत ने 10,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया. आरसीएस को यह भी निदेश मिला कि वह 15 दिन के भीतर जय भवानी सहकारी समूह हाउसिंग सोसायटी लिमिटेड (द्वारका) को जुर्माने का भुगतान कर दे.
आरसीएस ने कहा कि वह सूची डी.डी.ए. को इस कारण से नहीं भेज रहा था क्योंकि सीबीआई ने हाउसिंग सोसाइटी से संबंधित एक आपराधिक मामले में आरोप पत्र दाखिल नहीं किया था. इस स्थिति को “अराजक” करार देते हुए अदालत ने कहा कि आरसीएस को ड्रा निकलने देना चाहिए था. अदालत ने अपने कई मिलते जुलते मामलों के फैसलों का उल्लेख भी किया.
“डीडीए ने 1998 में सेक्टर-22, द्वारका में सोसायटी को भूमि प्रदान की थी. 90 प्रतिशत निर्माण पूरा होने पर समिति ने 69 सदस्यों को फ्लैटों के आवंटन का प्रस्ताव करते हुए आरसीएस को एक पत्र भेजा. इस के बावजूद, डीडीए को सदस्यों के नाम नहीं भेजे गए और सदस्य दिसंबर 2005 से अधर में लटक रहे हैं”, अदालत ने कहा.