शशि राजगोपाल मालेगाम समिति की एक सदस्य थीं. यह समिति माइक्रोफाइनांस संस्थानों को विनियमित करने के तरीकों के अध्ययन के लिए बनी थी. वह भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड पर भी थीं. नाबार्ड में वह यू सी सारंगी समिति की एक सदस्य थीं जिसका गठन किसानों की ऋणग्रस्तता के अध्ययन के लिए किया गया था.
उनकी मौत पर टिप्पणी करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा, “शशि की मौत पूरे भारतीय रिजर्व बैंक परिवार के लिए एक अपूरणीय क्षति है.
राजगोपालन सत्तर के दशक के मध्य में सहकारी विकास फाउंडेशन (CDF) में शामिल हुईं. CDF 1975 में स्थापित भारत में सहकारिता को बढ़ावा देने वाली समिति है. यही से राजगोपालन और उनके सहयोगियों ने बचत और क्रेडिट सहकारी समितियों को विकसित किया. यह किसानों को बचत और ऋण दोनों की पेशकश करते हुए एक त्वरित सफलता थी.
वह सहकारी आंदोलन के उस युग से संबंध रखती थी जब सहकारिता नेता गांव-गांव घूम कर लोगों से नये सहकारी बैंक के शेयर खरीदने के लिए पूछते थी. वह दिल से सहकारी कर्मी थीं जो सहकार्मी सदस्यों के निर्णय के साथ कभी हस्तक्षेप नहीं करती थीं.
वह नए सहकारी कानूनों के सृजन के लिए लड़ती रहीं – पहले आंध्र प्रदेश में और फिर अन्य राज्यों कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे में.
सहकारी भावना की एक मजबूत पैरोकार, वह हमेशा इसे लोगों की समस्या के एक समाधान के रूप में देखती थीं. यह एक मॉडल है जहां लोग आम जरूरतों के लिए एक साथ आते हैं और एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से जरूरत को पूरा करते हैं.