मायावती सरकार ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक पेश कर दिया. यह विधेयक जून के महीने में प्रख्यापित अध्यादेश की जगह लेगा जो सहकारी समितियों के प्रबंधनसमितियों के कार्यकाल को दो से तीन साल तक बढ़ाने के लिए रखा गया था.
भारत के राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष डॉ. चंद्र पाल सिंह सहित अन्य सहकारी नेताओं ने इसे राजनीतिक सत्ता का एक ज़बरदस्त दुरुपयोग बताया.
मायावती सरकार ने पहले सितंबर 2007 में निर्वाचित सहकारी निकायों के कार्यकालको तीन साल कम कर दो साल कर दिया. उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि उनकी पार्टी के सदस्य के सहकारी बोर्ड पर जल्दी ही कब्जा करने के योग्य बन जाएं. ऐसे ही लोगों के लिए, उन्होंने पहले अध्यादेश द्वारा और अब अधिनियम द्वारा कार्यकाल बढ़या है. राजनीतिक दुरुपयोग की एक क्या ही मिशाल है!
2009 में कुल 12291 में से 11790 सहकारी निकायों के चुनाव आयोजित हुए, जिसमें उन्होंने ग्राम स्तर से राज्य स्तर पर अपने लोगों की जीत सुनिश्चित की.
लेकिन अब, दो साल के पूरा होने के बाद अचानक उनके मन में सहकारी निकायों के बोर्ड और प्रबंधन के लिए 3 साल अवधि की पुरानी प्रणाली के लिए प्यार का उमड़ गया है.
केंद्र सहकारी कानूनों में एक संशोधन पर काम कर रहा है, जो सहकारी समिति के निदेशक मंडल की निरंतरता पांच साल के कार्यकाल केलिए सुनिश्चित करेगा – राजनीतिक पद पर कौन आता है और कौन जाता है, इसका कोई महत्व नहीं होगा. यह कानून पूरे भारत के लिए लागू किया जाना है जो देश में सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देगा और मायावती जैसे लोगों को दूर रखेगा.