कई सहकारी समितियां अपने अथक प्रयास के बावजूद बंद हो जातीं हैं अगर उन्हें सरकार या बड़ी सहकारी समिति से मदद नहीं मिलती. मध्य प्रदेश में केसला महिला ब्रॉयलर पोल्ट्री उत्पादक सहकारी का एक मामला है.
यह देश की पहली महिला पॉल्ट्री सहकारी है जो एक दशक पहले शुरू हई थी. यह हाल तक ठीक काम कर रही थी. लेकिन कुछ निजी खिलाड़ियों ने इस सहकारिता की सफलता देखकर अपने चिकन की कीमत इतनी कम कर दी कि पॉल्ट्री सहकारी बर्वाद हो जाय. यह एक पुराना कॉर्पोरेट खेल है.
इस सहकारी समिति में सुकतावा गांव के आस-पास के आदिवासी बेल्ट की 34 बस्तियों में से 900 महिला सदस्य हैं. इसका सुकतावा चिकन ब्रांड स्थानीय बाजार में काफी सफल रहा है. परिवारों के पुरुष सदस्य उन्हें सुकतावा, बैतूल, मुल्ताई, भोपाल, इटारसी, होशंगाबाद, पचमढ़ी और पिपरिया के पास के बाजार में आपूर्ति करते थे.
आईबी समूह, एक निजी खिलाड़ी, ने कबाब चिकन की कीमत बहुत कम आंकी है. प्रतिद्वंद्वी फर्म ने कबाब चिकन की कीमत थोक विक्रेताओं के लिए 40 रुपए प्रति किलो पर तय की है, जबकि असहाय सहकारी का कहना है कि यह अपने वर्तमान दर को प्रति किलो 45 रुपये से नीचे नहीं गिरा सकती है.
राज्य सरकार ने इस सहकारी में शामिल गरीब और आदिवासी महिलाओं की मदद और हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, हालांकि सरकार सहकारी के नाम पर वैश्विक सम्मेलन के आयोजन करती है.
शीर्ष सहकारी होने के नाते NCUI को आगे आ कर इस तरह की सहकारी समितियों की मदद करनी चाहिए जो कठिन प्रयास के बावजूद समस्या का सामना कर रही हैं.