NCUI के उन कर्मचारियों के लिए अच्छी खबर है, जो सहकारी शिक्षा कार्यक्रम का हिस्सा हैं. NCUI के मुख्य कार्यकारी डॉ. दिनेश ने जून, 2011 तक के उनके लंबित वेतन को मंजूरी दे दी है. डॉ. दिनेश ने Indiancooperative.com से कहा,- “उनकी समस्या मेरे ऊपर बोझ बनी हुई थी और अब मैं कुछ हद तक राहत महसूस कर रहा हूं”.
लेकिन उनकी मुख्य समस्या अभी भी लटकी हुई है.
पाठकों को याद होगा कि सरकार ने व्याख्याता घोटाले के मद्देनजर में NCUI के लिए धन देना बंद कर दिया है जिससे NCUI के कर्मचारियों को महान असुविधा हुई और उनके परिवारों को भूखा रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. जिन लोगों का घोटाले से कोई लेना-देना नहीं उन्हें दंडित किया जा रहा है जबकि घोटाले के वास्तुकारों को मात्र हस्तांतरण के साथ दंडित किया जा रहा है.
ज़ुल्म और भाई-भतीजावाद के एक क्लासिक मामले में, तत्कालीन मुख्य कार्यकारी श्री भगवती प्रसाद ने 2005 में मनमाने ढंग से क्षेत्र-अधिकारियों की स्थायी नौकरी को अनुबंध में बदल दिया और उन्हें धमकी दी कि या तो हाँ कहें या इस्तीफा दें.
कहानी शुरू हुई जब भारत सरकार ने 1976 में मध्य प्रदेश में एक पायलट परियोजना के साथ सहकारी शिक्षा कार्यक्रम शुरू की. उसके बाद 15 ऐसी परियोजनाओं को देश भर के कम विकसित राज्यों राज्यों में जमीनी स्तर पर सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए स्थापित किया गया.
सरकार द्वारा योजना के मूल्यांकन के बाद समय-समय पर इन परियोजनाओं की संख्या बढ़ी है और NCUI को 100% अनुदान सहायता अविकसित राज्यों में सहकारी शिक्षा स्कीम को गहनता से लागू करने के लिए प्रदान की जाती है. वर्तमान में पूरे भारत में 44 परियोजनाएं हैं और उनमें 202 से अधिक कर्मचारियों की ताकत है.