सहकारी बिल संसद में अनाथ की तरह धूल खा रहा है. यह संशोधन विधेयक सन् २००९ में सभी उपाबंधो के संसद में पस्तुर किया गया था और उसे स्थायी समिति को भेजा गया था. बासुदेव आचार्य की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति ने 30 अगस्त, 2010 को इसे वापस भेजा था.
ऐसे उदाहरण है जहां चुनाव अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है और नामित पदाधिकारियों या प्रशासक एक लंबे समय के लिए इन संस्थानों के प्रभारी के रूप में काम करते रहे हैं.
इससे सदस्यों के प्रते सहकारी समितियों के प्रबंधन की जवाबदेही कम हो जाती है. कई सहकारी संस्थाओं के प्रबंधन में अपर्याप्त व्यावसायिकता से सेवाओं और उत्पादकता में कमी आई है. सहकारिता के लिए आवश्यक है कि वह अच्छी तरह से स्थापित लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुसार चले और चुनाव समय पर, स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से आयोजित हों.