भारतीय सहकारी आंदोलन उन कुछ लोंगों के कंधों पर टिका है जो बिना किसी स्वार्थ के जनता के बीच सहकारी अस्तित्व की भावना जगाने की कोशिश करते रहे हैं. अभ्युदय बैंक के अध्यक्ष श्री सीताराम सी. घंडट ऐसे ही एक जन्मजात सहकारी नेता हैं.
घंडटजी के जीवन की कहानी साबित करती है कि कैसे एक अर्थपूर्ण व्यक्ति चमत्कार कर सकता है अगर उसका आशय पवित्र हो. घंडट कभी महाराष्ट्र विधानसभा में एक चपरासी के पद पर थे. अब पिछले 17 वर्षों से वह इसके सदस्य हैं और स्वतंत्र टिकट पर तीन बार निर्वाचित हुए हैं.
किसी को ऐसा सम्मान केवल तब मिलता जब वह सिर्फ सहज रूप से ईमानदार और सहयोगी हो. यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने मात्र 5000.०० रुपए से सन् 1965 में अभ्युदय सहकारी बैंक की शुरुआत की और अपनी विश्वसनीयता के बल पर अब उसे ११००० करोड़ रुपये की ऊंचाई पर ले गए हैं.
घंडट केवल ईमानदार ही नहीं बल्कि दूरदर्शी भी हैं. मुंबई में अम्बाबाड़ी की झोपड़पट्टी में 1965 में बैंक की स्थापना के बाद वह 10 रुपये के संग्रह के लिए भी संघर्ष करते रहे. कारखानों के कर्मचारियों को बैंक का सदस्य बनाने हेतु लुभाने के लिए उन्होंने 1000 रुपये की छोटी रकम का ऋण देना शुरू किया. यह तरीका कामयाब हो गया और फिर वह टैक्सी खरीदने के लिए छोटे ऋण देने लगे. तब से उन्होंने मुड़कर वापस नहीं देखा. इस बैंक का मुख्यालय मुंबई में है और इसकी 105 शाखाएं कई राज्यों में फैली हैं.