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भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (NCUI) की किरकिरी

संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित वर्ष 2012 अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष के रूप में दुनिया भर में मनाया जा रहा है, सरकार और सहकारी संस्थाएँ  सहकारी समितियों के बारे में वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए काफी पैसे खर्च कर रहे है।

IYC में अब तक आयोजित मतदान में भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की भूमिका पर भारतीय सहकारिता डॉट कॉम द्वारा कई सवाल उठाए गए है, ये आश्चर्यजनक बात है कि बहुमत लोगो की राय NCUI के पक्ष में है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

NCUI  सहकारी अंतर्राष्ट्रीय वर्ष की पूर्व संध्या पर एक कांग्रेस आयोजित करना चाहता है, लेकिन वह ऐसा करने में असफल दिख रहा है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिन्हें समारोह का उद्घाटन करने के लिए संपर्क किया था उन्होने समय देने से इंकार कर दिया है। भारत की राष्ट्रपति जो  NCUI के बोर्ड की सदस्या थी,  उन्होने भी व्यस्त होने का बहाना बनाया है।

निराश होकर  NCUI ने केंद्रीय कृषि और सहयोग मंत्री शरद पवार से संपर्क किया जिन्होने भी कथित तौर पर इनकार कर दिया है। अब NCUI के सामने एक बड़ा सवाल है  कि एक व्यक्ति जिसका व्यक्तित्व इस अवसर के लिए  फिट बैठता है उसको कैसे खोजा जाए।

लगता है खुद NCUI की हालत ठीक नही है, उसके अध्यक्ष खुद कई मामलों मे उलझे हुए है   और उसका मुख्य ऑफिसर विदेश में बैठकों मे भाग लेने मे व्यस्त है। मुख्य कार्यकारी पुणे की लगातार यात्राएं कर रहे है, जहां वह VAMNICOM प्रमुख के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते है, उनके पास NCUI के लिए थोडा भी समय और ऊर्जा नहीं।

NCUI  की हालत इतनी खराब है कि जब इंटरनेशनल कॉआपरेटिव एलायंस (आईसीए) भारतीय सहकारिता डॉट कॉम के साथ IYC की पूर्व संध्या पर सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए पिछले अक्तूबर से ही संपर्क स्थापित करता रहा है उसका इस तरह का प्रस्ताव  NCUI के लिए कोई अर्थ नही रखता है।

कहने कि जरुरत नही कि NCUI सरकार द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, अन्य देशों और राज्यों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री 2012 IYC की पूर्व संध्या पर सहकारी कांग्रेस का उद्घाटन करने को बेताब है, यह एक दुखद कहानी है कि  सहकारी आंदोलन जिसके 250 लाख सदस्य हैं को यहाँ गंभीरता से नही लिया जा रहा है यह भारतीय सहकारी आंदोलन पर एक मनहूस टिप्पणी है।

 

 

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