बिस्कोमोन के पूर्व अध्यक्ष सुनील सिंह ने सारन प्राथमिक कृषि सहकारी समिति पैक्स की अध्यक्षता भी खो दी है।
सारन पैक्स के चुनाव को रामसहाय नाम के किसी व्यक्ति ने चुनौती दी थी, जिसका फैसला अंत में सुनील सिंह के खिलाफ गया। इस पद से जाना उच्च प्रोफ़ाइल सहकारी नेता सुनील सिंह के लिए एक बड़ा झटका है।
अपने फैसले में संयुक्त रजिस्ट्रार ने चुनाव प्रक्रिया को रद्द करते हुए कहा कि सुनील सिंह सारन पैक्स के अध्यक्ष नही रह सकते।
पूर्व बिस्कोमोन अध्यक्ष सुनील सिंह ने इस निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि संयुक्त रजिस्ट्रार डुमरी-बुर्ज चुनाव को रद्द करने के दबाव में थे। मंत्री ने एक जनसभा में उनका स्थांतरण सहरसा करने की धमकी भी दी थी।
श्री सिंह ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने सहकारी अधिनियम में चार बार संशोधन एक व्यक्ति से छुटकारा पाने के लिए किया था, पर वह हर समय विफल रहा। अंत में अनुचित ढंग से मुझे हटाने की साजिश रची गई।
श्री सिंह ने रजिस्ट्रार की अदालत में निर्णय के विरुद्ध अपील करने की कसम खाई और ये भी कहा कि अगर न्याय नहीं मिला तो वे उच्च न्यायालय भी जाएँगे।
बिहार में सहकारिता राजनीति का एक बड़ा अड्डा है जहाँ आरजेडी और जेडीयू के बीच राजनीतिक संघर्ष देखा जाता है, जेडीयू के सत्ता परिग्रहण के ठीक बाद, सुनील सिंह को बिस्कोमोन से बेदखल करने के प्रयास शुरू हो गए। सुनील सिंह पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के करीब माने जाते है।
श्री सिंह ने काफी लंबे समय तक अपना बचाव किया, लेकिन लड़ाई का स्तर गिरता रहा और एक पुराने मामले में सहकारिता मंत्री को न केवल पद खोना पड़ा बल्कि उन्हें कारावास भी झेलना पड़ा।
जेल से बाहर आने के बाद, रामधर सिंह ने एक रणनीति के तहत काम किया है और सरकार के लिए कानूनी जीत को सुनिश्चित किया है। उन्होंने बिस्कोमोन बोर्ड भंग कर सुनील सिंह और उनके टीम को सभी अधिकार से वंचित कर दिया।
पाठकों को याद होगा कि बिहार चुनाव प्राधिकरण प्राथमिक कृषि सहकारी समिति की स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए करीब दो साल पहले स्थापित किया गया था। यह प्रयोग सफल रहा और राज्य में पैक्स का एक विश्वसनीय नेटवर्क तैयार हो गया।
अब राज्य सरकार के सभी कृषि से संबंधित योजनाएँ पैक्स के माध्यम से कार्यान्वित किये जा रहे है। पैक्स के महत्व को इस बदले हुए परिदृश्य में समझा जा सकता है और साथ ही पूर्व बिस्कोमोन अध्यक्ष के नुकसान को भी इस रोशनी में बेहतर तरह से समझा जा सकता है।
सुनील सिंह, अभी भी कृभको की बोर्ड पर बने हुए है। उनके विरोधी अधिनियम का हवाला देते हुए उन्हें बोर्ड से हटाने के लिए निशाना साध रहे हैं। उनका तर्क है कि वे बिस्कोमोन के नामांकित सदस्य के नाते कृभको बोर्ड मे है लेकिन अब उनके इस बोर्ड पर रहने का औचित्य नही है।