वित्तीय समावेशन समकालीन दुनिया की एक बड़ी जरुरत है। अगर हम इस जरुरत को पूरा नहीं करेंगे तो हम मुश्किल से एक सफल समाज का निर्माण कर सकते है। यह अफसोस की बात है कि हमारे बैंक समय की इस भावना को स्वीकार करने के मामले में काफी पीछे है।
आनंद सिन्हा, भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि देश के अर्द्ध-ग्रामीण और ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले साधारण लोग अभी भी बिना बैंक के रह रहे है।
श्री सिन्हा ने कहा, शहरी सहकारी बैंकों को गरीब लोगों को अपने दायरे में लाने की कोशिश करनी चाहिए। गरीब मुश्किल से वाणिज्यिक बैंकों तक पहुँच सकता है, जबकि शहरी सहकारी बैंक उनको अपनी सेवा दे सकता है।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार देश में 97 हजार से अधिक सहकारी बैंक और लगभग 2 हजार शहरी सहकारी बैंक है। कुल मिलाकर, सहकारी बैंक एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं और उनके बिना वित्तीय समावेश का लक्ष्य पूरा करना असंभव होगा। यह महत्वपूर्ण है कि दोनों सिन्हा और वाय एच मालेगाम समिति अभी तक बैंकरहित क्षेत्रों में शहरी सहकारी बैंकों की अधिक से अधिक उपस्थिति की वकालत की है।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट कहती हैं कि ग्रामीण सहकारी बैंकों के साथ सब कुछ ठीक नही है। पैक्स की आर्थिक हालात खराब है और वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करने की उनकी क्षमता गंभीर रूप से सीमित है। इसके अलावा सहकारी बैंक उत्तर-पूर्व में अपने नेटवर्क के प्रसार में बहुत धीमी गति से कार्य कर रहे है।