एनसीयुआई अध्यक्ष ने अंतत: केंद्रीय कृषि सचिव को एक पत्र लिखा है जिसके लिए कृषि मंत्रालय ने सबसे बड़े सहकारी संगठन ने एक साल से भी अधिक तक शिकंजा कसे हुए है।
अपने पत्र में एनसीयुआई अध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह यादव प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियाँ सौंपने के लिए सहमत हो गए है।
भारतीय सहकारिता डॉट कॉम से बात करते हुए एनसीयुआई के मुख्य कार्यकारी डॉ. दिनेश ने पुष्टि की है कि पत्र भेज दिया गया था लेकिन जब इसके कंटेंट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा “मैं नहीं जानता कि उन्होंने क्या लिखा है। यह उनके और मंत्रालय के बीच की बात है। अब तक मैं निश्चिंत हूँ, मैं गवर्निंग काउंसिल और अध्यक्ष के मार्गदर्शन के अंतर्गत काम करता रहूँगा।”
हालांकि, पाठकों को डॉ. दिनेश के एक सप्ताह पहले ही व्यक्त शब्द याद होंगे। उन्होंने भारतीय सहकारिता को दिए गए साक्षात्कार में एनसीयुआई और मंत्रालय के बीच रिश्ते बहाल होने के बारे में बात की थी।
पिछले हफ्ते की बैठक वास्तव में महत्वपूर्ण थी, जिसके बारे में भारतीय सहकारिता डॉट कॉम ने अपने पाठकों को सूचित किया था। इस बैठक में चन्द्रपाल ने शक्तियां सौंपने के क्रम में एक वित्तीय संकट से एनसीयुआई को उबारने का फैसला किया।
सूत्रों के अनुसार, एनसीयुआई क्षेत्र परियोजना में बिना वेतन के महीनों से काम कर रहे कर्मचारियों की दुर्दशा ने चन्द्रपाल को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। चन्द्रपाल ने केंद्रीय मंत्री शरद पवार के साथ अपनी बैठक में कर्मचारियों के हित में हस्तक्षेप की मांग की थी। उनकी स्थिति की मजबूरी का लाभ उठाते हुए, मंत्रालय के बाबुओं ने उससे कहा कि उन्हें अपनी शक्तियों को खत्म करने के लिए कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने होंगे। जब वह सिरी फोर्ट रोड पर अपने कार्यालय में लौट रहे थे तब वह जानते थे कि उन्होंने सब खो दिया है।
जल्दी ही एनसीयुआई को अब धन मिलना शुरु हो जाएगा, एनसीयुआई के एक निदेशक ने सूचित किया। लेकिन क्या यह समझ से परे नही है कि सबसे बड़ा सहकारी संगठन सत्ताशील-बाबुओं की गोद में जा बैठेगा।
पहले कुछ अवसरों पर शक्तियों के मुद्दे को लेकर शासी परिषद की बैठकों में विरोध किया था की निर्वाचित प्रमुख सर्वोपरि होते है।
लेकिन मंत्रालय ने निरंतर धन को रोककर दबाव बनाकर अध्यक्ष को मजबूर कर दिया, और यह यादव की लाचारी को और भी गहरा कर दिया।
अब उनकी जीत से एनसीयुआई के तत्काल भविष्य के हिसाब से तो उनकी जीत हुई है, लेकिन उन्होंने सहकारी आंदोलन के भविष्य के संदर्भ वे हार गए है।
यह अनुभव एक सबक भी सिखाता है कि अगर आप बाबुओं के सामने इज्जत से खड़ा होना चाहते हैं तो आपको आर्थिक रूप से सक्षम होना चाहिए। सहकारी आंदोलन पूरी दुनिया में व्याप्त है लेकिन ये सरकारी प्रयासों का फल नही है, यह लोगों की उपलब्धि है।