गुजरात उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका में केंद्रीय कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, क्योंकि सहकारी संस्थाएँ राज्य से संबंधित विषय है।
एक गैर सरकारी संगठन, उपभोक्ता संरक्षण और विश्लेषणात्मक समिति (सीपीएसी) ने एक जनहित याचिका के माध्यम से वर्ष 1966 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम में किए गए संशोधन को रद्द करने की मांग की है।
मुख्य न्यायाधीश भास्कर भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति जेबी पार्दीवाला याचिकाकर्ता के वकील विश्वास शाह को सुनने के बाद तीन सप्ताह के लिए मामले को स्थगित कर दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुशासन के भीतर सहकारी बैंकों को लाने के लिए आरबीआई अधिनियम, 1934 में संशोधन किया गया था। याचिका में कहा गया है कि इसके तहत दोहरे नियंत्रण की व्यवस्था उभरी है।
इस प्रकार निगमन, विनियमन और सहकारी समितियों के समापन एक सहकारी समिति राज्य कानून द्वारा शासित है और बैंकिंग व्यापार का विनियमन केंद्र सरकार द्वारा शासित है याचिका में कहा गया।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि कानूनी बिंदु से देखने पर सभी सहकारी बैंक, सहकारी समितियां हैं, लेकिन एक सहकारी समिति, सहकारी बैंक हो भी सकता है और नहीं भी। सभी सहकारी समितियाँ केवल राज्य सहकारी कानून द्वारा विनियमित होते है, जबकि सहकारी बैंक केंद्रीय बैंकिंग कानूनों और राज्य सहकारी कानून दोनों द्वारा विनियमित होते है।
याचिका में दावा किया गया है कि इस दोहरे नियंत्रण पैटर्न को सहकारी बैंकों के लिए बनाया गया है।
इस दोहरी नियंत्रण ने सहकारी समितियों के सुचारू संचालन के लिए कई जटिलताओं और समस्याओं को पैदा कर दी है, जनहित याचिका में कोर्ट से माँग की गई है कि भारत संघ को सहकारी संस्थाओं पर कानून बनाने का कोई अधिकार नही है क्योंकि यह राज्य का मामला है।