सहकारी राजनीति बहुत दिलचस्प है, यहाँ सत्ता परिवर्तन को देखने की संभावना कम ही होती है। एनसीसीएफ के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह नेफेड के प्रभाव में गिरावट के लिए अपनी किस्मत को धन्यवाद दे रहे होंगे।
अध्यक्ष चुनाव से कुछ वर्ष पहले वीरेन्द्र सिंह को उनके ही बोर्ड के विरोधी अजित सिंह के पुत्र विशाल सिंह के बीच कड़ा संघर्ष था। शीर्ष स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा इतनी तीव्र थी कि एनसीयुआई अध्यक्ष चन्द्रपाल सिंह को दोनों के बीच हो रहे संघर्ष पर विराम लगाने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।
ऐसी अफवाह थी कि अध्यक्ष पद के कार्यकाल का आधा विशाल सिंह और आधा वीरेन्द्र सिंह संभालेंगे। पता नही यह सच है या नहीं कि नेफेड में विशाल की बदकिस्मती के कारण वीरेन्द्र सिंह को इस तरह की स्थिति का लाभ मिला है।
नेफेड और एनसीसीएफ बोर्ड के कदवार सदस्य बिजेन्दर सिंह हमेशा विशाल के समर्थन में खड़े रहे है। खास बात यह है कि जब विशाल ने अपने पिता को खो दिया था तब चन्द्रपाल सिंह ने अपने बेटे के समान उसको पिता का स्नेह दिया था।
एनसीसीएफ बोर्ड की बैठक में कई मौकों पर वीरेन्द्र सिंह एक मात्र दर्शक के रुप में होते थे। जबकि विशाल और उसके प्रति सहानुभूति रखने वाले ताकतवर थे। एक बार तो वीरेन्द्र सिंह द्वारा नियुक्त किए गए लोगों को पद से हटा दिया गया लेकिन वीरेन्द्र सिंह कुछ भी नहीं कर सकें।
लेकिन नेफेड की बदकिस्मती केवल विशाल को ही कमजोर नही किया है बल्कि बिजेन्दर सिंह की ताकत भी कम हो गई है।
अभी भी कई मुद्दें है जो विरेन्द्र सिंह को परेशान कर रहे है। कुछ अधिकारी भी सहकारी राजनीति में हाथ आजमाना चाहते है। वे अपने स्वयं के स्वार्थ पर आमादा लग रहे हैं जबकि सहकारी नेतृत्व का भविष्य अभी अनिश्चितता के घेरे में है।
इस सबसे एनसीसीएफ की कई परियोजनाओं में देरी हुई है। आशा है कि एक शक्तिमान अध्यक्ष सबसे बड़े सहकारी समिति पर तत्काल दबाव बनाकर सफलता हासिल करेगा।