मेहसाणा दुग्ध संघ के अध्यक्ष विपुल चौधरी को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) के नए अध्यक्ष के रूप में चुना गया है। इस चुनाव में राजनीतिक पैंतरेबाज़ी को देखा गया।
दो बार अमूल के अध्यक्ष रह चुके पार्थी भतोल ने चौधरी की जीत का रास्ता खुद तैयार करके मीडिया और जीसीएमएमएफ की राजनीति से जुड़े लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।
भतोल ने कहा कि “मैंने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दायर नहीं किया था। मैंने विपुल का नाम प्रस्तावित किया था। उन्हें डेयरी उद्योग का महत्वपूर्ण अनुभव है और वह मेहसाणा दुग्ध संघ में भी अध्यक्ष रह चुके है। हम सभी को साथ मिलकर जीसीएमएमएफ को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाना होगा।”
कल तक भतोल शीर्ष राजनीतिक पद के लिए तैयार थे, लेकिन आखिरी मिनट में उन्होंने विपुल चौधरी का नाम प्रस्तावित कर दिया, यह राजनीति लामबंदी का एक निराशपूर्ण अंत से कम नही था।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, नवंबर में निर्धारित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक भंवर में फंस गए है। भाजपा केशु भाई के नई पार्टी बनाने से पहले से ही काफी परेशान है और अब जीसीएमएमएफ की राजनीति के चलते भाजपा की एकता और भी मुश्किल में पड़ गई है।
जीसीएमएमएफ से संबद्ध दूध यूनियनों के अध्यक्ष आखिरी मिनट तक नरेंद्र मोदी के “अनुदेश” का इंतजार कर रहे थे। यहां तक कि जिस तरह से राजनीति हो रही थी क्या होगा भतोल को कुछ पता नही चल सका। मोदी भाजपा की एकता को क्षतिग्रस्त नही होने देना चाहते थे।
राजनीतिक हलचल काफी तेज रही। निर्देश स्पष्ट थे, विपुल को समर्थन करना है और कोई नही निवर्तमान अध्यक्ष भतोल ही उनके नाम का प्रस्ताव करेंगे।
इससे जीसीएमएमएफ के अध्यक्ष का चुनाव आसान हो गया। भतोल के नामांकन फाइल नहीं करने से विपुल चौधरी को सर्वसम्मति से चुन लिया गया। आम सहमति सहकारी राजनीति साबित हुई।
सत्ता का परिवर्तन बड़े ही आसानी से हुआ और केवल आधे घंटे के अंदर डेयरी अपना नया अभिभावक चुन लिया गया। उम्मीद है कि यह खुशमिजाजी आगे के दिनों में भी जारी रहेगी। विपुल ने 2020 तक कारोबार को 30,000 करोड़ रुपये करने के लक्ष्य की घोषणा पहले ही कर चुके है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्हें सभी के समर्थन की आवश्यकता होगी। जो भी हो, अमूल भारतीय सहकारी आंदोलन का गौरव है।