उत्तराखंड में सहकारी चीनी मिलों का संकट एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है।
राज्य की विधानसभा में भाजपा के सदस्यों ने चीनी मिल और राज्य में चीनी की विनिर्माण इकाइयों पर लागू पीपीपी मॉडल का विरोध करना शुरू कर दिया है।
जबकि सरकार ने अपने निर्णय को आर्थिक क्षमता के सिद्धांत के आधार पर बचाव किया है, विपक्ष इसे एक खरीद फ़रोख़्त बताती है।
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री बहुगुणा इस संकट का तत्काल समाधान के लिए इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ बातचीत करना चाहते है।
वर्ष दर वर्ष निराशाजनक प्रदर्शन के बाद उत्तराखंड में पाँच सहकारी क्षेत्र की चीनी मिलों को सार्वजनिक निजी भागीदारी योजना के लिए आवंटित किया गया है। राज्य सरकार ने आर्थिक नुकसान के आधार पर गदरपुर मिल को बंद करने का फैसला किया है। सहकारी समितियों के तहत चार अन्य चीनी मिलों को अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए पीपीपी मॉडल पर चलाए जाने का निर्णय लिया गया है।
राज्य में सरकारी क्षेत्र में चार निजी और छह सहकारी चीनी मिल हैं।
राज्य सरकार को हर साल अपने बजट में से इन छह में से पाँच चीनी मिलों के लिए आर्थिक मदद देनी पड़ती थी, और अब सरकार ने नेशनल शुगर फेडरेशन की सिफारिशों के आधार पर यह निर्णय लिया है।