राकेश चोपड़ा, भारतीय सहकारिता के पाठक है जिन्होने वीर शैव सहकारी बैंक में बड़े पैमाने पर हुई धोखाधड़ी पर जानकारी भेजी गई।
यह उल्लेखनीय है कि वीर शैव सहकारी बैंक के निर्देशकों और कुछ उधारकर्ताओं ने मिलकर कथित तौर पर बैंक में लूट-पाट करने की साजिश रची थी और धोखाधड़ी में 50 करोड़ से अधिक की राशि शामिल है।
15 हजार से अधिक निवेशक इससे प्रभावित हो रहे है।
हमने इस मुद्दे पर श्री चोपड़ा से बात की – संपादक
अद्यतन -वीरा शैव सहकारी बैंक -आरबीआई ने हमारे लिए एक जवाब भेजा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक इस मामले से कुछ लेना-देना नही है और हमें बैंक और परिसमापक से संपर्क करना चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक ने भुगतान के लिए हमारे अनुरोध को बैंक के चेंबूर स्थित हेड ऑफिस भेज दिया है।
डीआईसीजीसी ने भी इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि जमाकर्ताओं को परिसमापक से संपर्क करना चाहिए और बैंक और डीआईसीजीसी, जमाकर्ता के आधिकारिक दावे पर परिसमापक फाइल के बिना कुछ नही कर सकते।
नियुक्त परिसमापक का पता है- श्री गवाडे (फोन नं. 27574965), जिला उप रजिस्ट्रार (डीडीआर), ‘एम’ वार्ड, द्वितीय तल, कोंकण भवन, सीबीडी बेलापुर, नवी मुंबई।
परिसमापक को डीआईसीजीसी से पैसे लेकर जमाकर्ता के दावों का निपटारा करने के लिए कहा गया है ऐसा माना जाता है। लेकिन ऐसा लगता है कि परिसमापक यह कार्य करने में सक्षम नहीं है इसलिए बैंक के अध्यक्ष और निर्देशकों ने उच्च न्यायालय में मामले दर्ज कराए है और वित्त मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली से बैंक ने लाइसेंस को वापस पाने के लिए अपील की है।
यह पता चला है कि अदालत में सुनवाई की अगली तारीख 17 सितंबर, 2012 है। जमाकर्ताओं को कोंकण भवन या बैंक के चेंबूर के हेडऑफिस में परिसमापक से संपर्क करना चाहिए और उन्हें बैंक के जमा खातों के आधार पर प्रत्येक जमाकर्ता के दावे के लिए दबाव बनाना चाहिए और डीआईसीजीसी से भी सभी दावों को तुरंत प्रस्तुत करवाना चाहिए और बिना किसी देरी के सत्यापन प्रक्रिया डीआईसीजीसी (आरबीआई भवन, द्वितीय तल, मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के सामने, मुंबई) में शुरु करना चाहिए।
आरबीआई बेदाग नही छूट सकता है। आरबीआई ने बैंक को अच्छी लेखापरीक्षा रेटिंग दी थी और बैंक को 2011 तक कार्य करने की अनुमति दी थी, तो अचानक क्या हुआ कि बैंक और परिसमापन के आदेश से लाइसेंस को रद्द करना पड़ा। अब बैंक के सभी जमाकर्ता को एक साथ होकर उच्च न्यायालय में एक जवाब दर्ज करना चाहिए और आरबीआई और डीआईसीजीसी को इस मामले में एक पक्ष के रुप में पेश करना चाहिए।
नियामक के रूप में आरबीआई पूरी तरह से जमाकर्ताओं के लिए जवाबदेह है, लेकिन रिजर्व बैंक जबरदस्ती कर रही है और कोई जवाबदेही नही लेती है। जमाकर्ताओं को उनकी जमा राशि का तुरंत भुगतान होना चाहिए। श्री डी.के. मित्तल– सचिव डीईए, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने भी यह बयान दिया है और एसबीआई को बैंक पर सीधे आधिपत्य करने के लिए और सभी जमाकर्ताओं को तुरंत भुगतान करने के निर्देश दिए है।