सहकारी बैंको के किए कानून बनाने के मामलों में केन्द्रीय सरकार के वैधानिक सक्षमता को चुनौती देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता उपभोक्ता संरक्षण और विश्लेषणात्मक समिति है।
उच्च न्यायालय ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कुछ टिप्पणियाँ पहले ही कर चुकी है, इसलिए मामले की सुनवाई की आवश्यकता है।
अन्य बातों के अलावा याचिका में कहा गया है कि है क्योंकि सहकारी बैंकिंग कानूनों को बनाना राज्य का विशिष्ट डोमेन है इसलिए केंद्र द्वारा बनाए गए तमाम कानून असंवैधानिक घोषित कर देना चाहिए।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा है कि सहकारी सोसायटी में 7 अनुसूची, 1 एंट्री, 45 सूची में नहीं आ सकता है।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ पहले ही कहा था कि सहकारी सोसायटी में 7 अनुसूची, 1 एंट्री, 43 सूची में नहीं आते है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि किसी भी मायने में समाज सहकारी 7 अनुसूची सूची I (संघ सूची) में नहीं आता है, लेकिन 7 अनुसूची सूची II (राज्य सूची) में पड़ता है।”
भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल, पी एस चंपानेरी ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि संसद को इस मामले में वैधानिक सक्षमता हासिल है।