सोमवार को पटना उच्च न्यायालय के फैसले से सुनील सिंह के बिस्कोमॉन अध्यक्ष बनने की संभावना बढ़ गई है।
पाठकों को याद होगा कि पिछले साल राज्य सरकार ने बिस्कोमॉन और बिहार राज्य आवास संघ सहित कई सहकारी महासंघों के बोर्ड को अधिक्रमित कर लिया था। राज्य भर में 14 जिला सहकारी बैंकों के बोर्ड और 300 व्यापार मंडल के बोर्ड को अधिक्रमित कर लिया था।
फैसले का स्वागत करते हुए डॉ. सुनील सिंह ने भारतीय सहकारिता को बताया कि “बिहार सरकार ने 2008 के बाद से चार बार सिर्फ मुझसे छुटकारा पाने के लिए कानून बनाया था, लेकिन एक बार फिर से उनके हाथ हार ही लगी है। माननीय उच्च न्यायालय ने देश के कानून को बहाल कर दिया है और हमें न्याय दिया है।”
उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि जिन 188 प्रतिनिधियों को पहले से ही चुन लिया गया था, उनके साथ राज्य निर्वाचन चुनाव प्राधिकरण को पुरानी प्रणाली पर आधारित चुनाव करना चाहिए।
बिहार सरकार द्वारा चुनावों के रद्द करने से संबंधित मामला उच्च न्यायालय के सामने थी। सरकार ने फिर दोबारा वैसा ही करना शुरु कर दिया था लेकिन न्यायालय ने इसे एक बार फिर से खारिज कर दिया है।
बिस्कोमॉन के अध्यक्ष पद पर बना रहना निश्चित है क्योंकि सुनील सिंह को अब 188 प्रतिनिधियों का सहयोग प्राप्त है, इन सहयोगी के बल पर ही दिल्ली में आयोजित होने वाले बहु राज्य सहकारी समितियों के वार्षिक आम बैठक को भी सुनील सिंह प्रभावित करेंगे।
चुनाव के लिए नामांकन नवम्बर 5 को शुरू होगा, जबकि मतदान 23 नवंबर के लिए निर्धारित है। अजीत सिंह के बेटे विशाल सिंह और सुनील सिंह के विरोधी प्रतिनिधी नहीं है। अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने के सपने के लिए यह एक बड़ा झटका है, इस प्रकार विशाल के पास फिलहाल कोई मौका नहीं है।
“सरकार ने बिस्कोमॉन के चुनाव प्रक्रिया को ठप करने की पूरी कोशिश की। हमारे साथियों में से 188 प्रतिनिधियों को निर्वाचित किया गया और 2008 में अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को पूरा किया जाना था, जब सरकार 1935 राज्य सहकारी अधिनियम को संशोधित करके संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2008 को हमें निर्वाचित होने से रोकने के लिए लेकर आई। अब निश्चित रूप से यह सुधार माननीय अदालत द्वारा किया गया है।” राहत के साथ डॉ. सिंह ने भारतीय सहकारिता को बताया।