बिस्कोमॉन के पूर्व अध्यक्ष सुनील सिंह का चुनावी मामला फिर से उलझ गया है। बिहार राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने के साथ एक बार फिर से कानूनी लड़ाई लड़ने जा रही है।
पटना उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि बिस्कोमॉन का चुनाव वर्ष 2008 के निर्वाचन मंडल के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट गया है, उनका तर्क है कि 2008 के निर्वाचक मंडल की वैधता 2013 तक ही मान्य थी जबकि 2012 में चुना गया बिस्कोमॉन बोर्ड 2017 तक बना रहेगा।
राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय में विसंगति को बताते हुए कहा कि सहकारी बैंक के बोर्ड के चुनाव के लिए 2012 तक के प्रतिनिधियों को मान्य माना गया जबकि बिस्कोमॉन चुनाव के लिए खारिज कर दिया।
सभी सहकारी कार्यकर्ता राज्य में सहकारी दुनिया के दिग्गज सुनील सिंह के लिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। चुनाव के लिए नामांकन नवम्बर 5 से शुरू हो जाएगा, जबकि मतदान 23 नवंबर के लिए निर्धारित है।
सुनील सिंह के मुख्य प्रतिद्वंद्वी और अजीत सिंह के बेटे विशाल सिंह 2008 की सूची में प्रतिनिधी नहीं है। भारतीय सहकारिता डॉट कॉम से बात करते हुए विशाल ने कहा कि उसका नाम रजिस्ट्रार द्वारा जानबूझकर नही निकाला गया है।
पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक फैसला जिससे बिना मुसीबत के सुनील सिंह बिस्कोमॉन के अध्यक्ष हो सकते थे।
उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि राज्य निर्वाचन प्राधिकरण चुनाव पुरानी प्रणाली के आधार पर करें जिसमें 188 प्रतिनिधि पहले से चुने गए थे।
उच्च न्यायालय के समक्ष यह मामला बिहार सरकार द्वारा चुनावों को रद्द करने के कारण आया था। सरकार के प्रयासों को न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था।
बिस्कोमॉन के अध्यक्ष के रूप में सुनील सिंह का चुनाव लगभग निश्चित है क्योंकि 188 प्रतिनिधियों में से बहुमत उनके सहयोगी है। वे दिल्ली में बहु राज्य सहकारी समितियों की आम बैठकों पर भी प्रभाव डाल सकते है।
पाठकों को याद होगा कि राज्य सरकार ने बिस्कोमॉन और बिहार राज्य आवास संघ सहित कई सहकारी महासंघों के बोर्ड को पिछले साल अधिक्रमित कर रखा था। इसके अलावा 14 जिला सहकारी बैंकों के बोर्ड और 300 व्यापार मंडलों के बोर्ड राज्य भर में अधिक्रमित थे।