सहकारी बैंकों सहित कोई भी वित्तीय संस्था यदि कारोबार के तर्क का पालन नहीं करती है तो वह व्यवहार्य नहीं हो सकती है। एक अदालत के फैसले में इस तर्क को बढ़ावा देते हुए डॉ. अन्नासाहेब छोगले शहरी सहकारी बैंकों को किसानों से ऋण की वसूली के लिए मंजूरी दी गई है।
याचिका समिति के विधायक मोहन जोशी ने बैंक से ऋण ले चुके बकाएदार किसानों के लिए एक याचिका को दायर किया था जिसे खारिज़ करने के लिए डॉ. अन्नासाहेब छोगले शहरी सहकारी बैंक ने बंबई उच्च न्यायालय से आग्रह किया था।
अदालत ने फैसला सुनाया है कि समिति को बैंक द्वारा वसूली करने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की शक्ति नहीं है।
दो न्यायाधीश की बेंच ने कहा कि बैंक वसूली संबंधी कार्यवाही को आरंभ कर सकता है और यह कानूनी माना जाएगा। हालांकि अदालत ने संशोधित देय ब्याज दर पर किए गए समझौते की वैधता पर अपनी राय देने से इनकार कर दिया।
यह उल्लेखनीय है कि प्रभावित बैंक ने किसानों को कम से कम एक करोड़ रुपये की राशि का ऋण दिया था। क्योंकि नियमित पुनर्भुगतान नही किया जा रहा था और वह राशि एनपीए हो गया था उस स्थिति में बैंक के पास वसूली की प्रक्रिया शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
बैंक ने महाराष्ट्र सहकारी सोसायटी अधिनियम, 1960 की धारा 101 के तहत कार्यवाही शुरू कर दी। सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार ने बैंक और 23 बकाएदारों को सुना और अधिनियम की धारा 101 के तहत वसूली प्रमाण पत्र जारी कर दिए।
बैंक इन प्रमाण पत्र के साथ महाराष्ट्र सहकारी सोसायटी के नियम 107 के तहत वसूली करना शुरू कर दिया।
बैंक इस मामले को अदालत में ले गया था याचिका समिति ने ऋण वसूली कार्यवाही को रोक दी थी।