भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयुआई) को सभागार के मुद्दे पर आसान समाधान निकालने में दिक्कतें आ रही है।
विक्रेता ने जिस सभागार को किराए पर लिया था उसके लिए एनसीयुआई के साथ सौदेबाजी करने के लिए अपने अनुबंध को नवीनीकृत करने को कहा या फिर बकाया चल रहे करोड़ रुपए को भूलने को कहा। नकदी की कमी से जूझ रहा एनसीयुआई बिजली के बिल और पानी के देय राशि के शुल्क को छोड़ने के मूड़ में नही दिखता।
जब भारतीय सहकारिता ने इस विषय को उठाया तो मुख्य कार्यकारी डॉ. दिनेश ने किसी भी जानकारी को साझा करने से इनकार कर दिया। पाठकों को याद होगा कि पिछले शासी परिषद की बैठक में एक समिति का गठन किया गया था जिसमें इस मुद्दे को हल करने की जिम्मेदारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. दिनेश, उपाध्यक्ष जी एच अमीन और बोर्ड के सदस्य मुदित वर्मा के कंधों पर डाल दी गई थी।
भारतीय सहकारिता से बात करते हुए श्री मुदित वर्मा ने कहा कि पिछली बैठक में हमने एनसीयुआई स्टाफ को विक्रेता से पिछले बकाया के मुद्दे से निपटने के लिए कहा था। श्री वर्मा ने खेद व्यक्त किया कि हालांकि विक्रेता पर एनसीयुआई का पैसा बकाया है, शीर्ष सहकारी उनसे अपनी बकाया राशि को लिए बिना उससे भुगतान करता रहा है।
आज हम उसके पीछे पड़े हुए हैं, लेकिन अगर हमारे स्टाफ ईमानदारी से कार्य करते तो कहानी दूसरी ही होती, श्री वर्मा ने कहा। उन्होंने स्टाफ के उन सदस्यों को जिन्होने विक्रेता को एनसीयुआई का खून चुसने की अनुमति दी है उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करके एनसीयुआई को बचाया जा सकता है, उन्होंने कहा।
जिस तरह से समिति की बैठक पिछली बार बुलाई गई थी उससे श्री वर्मा भी नाखुश थे। उन्होंने यह पता करने की कोशिश भी नही की कि बैठक की तारीख तारीख मुझे सूट करती है या नही। मुझे अंतिम क्षण में बैठक के बारे में सूचित किया गया था इसलिए मेरे लिए बैठक में भाग लेना असंभव था।
श्री वर्मा की पत्नी अगले सप्ताह गाजियाबाद जिला सहकारी बैंक के लिए चुनाव लड़ रही है।
डॉ. दिनेश, मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री वर्मा के आरोपों के जवाब को टाल गए। लेकिन वहाँ चर्चा है कि एक शक्तिशाली जीसी सदस्य का विक्रेता को गुप्त समर्थन मिला हुआ है।
विक्रेता पर आरोप है कि उसने सभागार की खराब हालत के लिए भी जिम्मेदार है: कुर्सियाँ टूटी हुई है और एयर कंडीशनर जगह को ठंडा नहीं कर पा रहा है।