इफको बोर्ड ने अपने एमडी यू. एस. अवस्थी और संयुक्त प्रबंध निदेशक राकेश कपूर को पिछले साल घरों को उपहार स्वरुप देने का निर्णय किया था जिसने हाल ही में मीडिया का ध्यान बहुत आकर्षित किया है। दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम जिले के उपायुक्त निखिल कुमार के द्वारा यह उद्धृत किया जा रहा है।
उनका कहना हे कि संपत्ति उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और वह जाहिर तौर पर इफको के अधिकारियों के नाम पर उसे हस्तांतरण करने को लेकर नाराज है।
भारतीय सहकारिता से बात करते हुए पब्लिक रिलेशन प्रबंधक हर्षवर्धन ने कहा कि सहकारी समितियों के काम को मीडिया द्वारा समझा नहीं जा रहा है और इसलिए यह भ्रम है। वे इफको के साथ सरकारी निकाय की तरह व्यवहार कर रहे है। यहाँ कुछ भी सरकारी नहीं है, बल्कि बोर्ड यहाँ सर्वोच्च है और वार्षिक आम बैठक द्वारा इस निर्णय को पारित किया गया है जिसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं हो सकता है, उन्होंने कहा।
हर्ष ने आगे कहा कि स्थानान्तरण वार्षिक आम बैठक और संगठन में शीर्ष निर्णय निकायों द्वारा अनुमोदित किया गया है। 28 मई, 2012 को आयोजित बैठक में सशक्त समिति ने फैसला किया है कि वेतन, भत्तों, और अन्य बड़े संगठन में मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के पारिश्रमिक पैकेजों को इफको ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को जो पैकेज दिया जा रहा है वह तुलना में अधिक हैं।
परिणामस्वरुप प्रबंध निदेशक और संयुक्त प्रबंध निदेशक के लिए यह एक विशेष प्रोत्साहन के रूप में घरों को जिसमें वह वर्तमान में रह रहे है, उन्हें प्रोत्साहन के लिए निर्धारित बजट प्रावधानों के तहत हस्तांतरित किया जा सकता है। हमारे एमडी ने सहकारिता में 20 साल सेवा की है और उन्होंने इफको के विकास के लिए काफी योगदान दिया है, हर्ष ने कहा।
पी आर प्रबंधक ने यह भी बताया कि सामान्य तौर पर अधिकार प्राप्त समिति का निर्णय इफको बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाता है लेकिन पारदर्शिता और मर्यादा के हित में यह मुद्दा एजीएम के सामान्य बैठक में प्रतिनिधिमण्डल के पास 29 मई, 2012 को आयोजित के लिए भेजा गया ।
इफको ने भी एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि इसमें किसी अधिकारी उसके योगदान की मान्यता में अनुग्रहपूर्वक मुआवज़ा देना किसी के हित टकराता नही है। अंत में यह पुनरावृत्ति करने लायक हैं कि पूरा विवाद एक गलतफहमी के आधार पर खड़ा लगता है। सवाल यह है कि यह संपत्ति एक सार्वजनिक संपत्ति नहीं है।
बयान में यह भी कहा गया कि इफको में कोई सरकारी इक्विटी नही है और इफको की संपत्ति एक सार्वजनिक संपत्ति नहीं है। यह भी कहा गया कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी किए गए पत्र “त्रुटिपूर्ण है और कानून के हिसाब से अच्छे नही है।”