गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन जीसीएमएमएफ ने भारत सरकार से कहा है कि भारतीय किसानों के महत्वपूर्ण हितों की रक्षा करते हुए यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत करने का आग्रह किया है। प्रमुख सहकारी इस संबंध में वाणिज्य मंत्री को एक विस्तृत पत्र भेजा है।
अपने पत्र में जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने कहा है कि यूरोपीय संघ भारतीय डेयरी उत्पादों को यूरोपीय बाजार में किसी न किसी बहाने से बेचने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है जबकि वह भारत में अपने दूध उत्पादों को आसानी से बेचना चाहता है।
भारतीय सहकारिता से बात करते हुए श्री सोढ़ी ने कहा कि “यूरोपीय संघ बड़े पैमाने पर किसानों को निर्यात सब्सिडी के माध्यम से अपने उत्पादों को ज्यादा वास्तविक लागत की तुलना में सस्ता बना दिया है।” यह अनुचित है और बराबरी के सिद्धांत का खुला उल्लंघन है।
श्री सोढ़ी के अनुसार यूरोपीय संघ अपने पनीर के कुछ ब्रांडों के सुरक्षा पर इतना जोर देते हैं कि भारतीय कंपनियां उनका नकल नहीं कर सके। हालांकि, यह अजीब है कि वे खुद भारतीय स्थानीय उत्पादों के तर्ज़ पर पनीर और लस्सी के लिए यहाँ स्वतंत्र बाजार की मांग कर रहे है, श्री सोढ़ी ने कहा।
जीसीएमएमएफ का यह भी तर्क है कि पश्चिम को बुनियादी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मानदंडों का पालन करना चाहिए, खासतौर से उन क्षेत्रो में जहां भारत को तुलनात्मक लाभ प्राप्त है।
बायोपाइरेसी, भारतीय चीजों का पेटेंट करने पर रॉयल्टी नही देना और व्यापारिक उल्लंघन को रोकने के लिए कोई भी कदम नही उठाती है, आयुर्वेदिक दवाएँ, नीम और कई अन्य उत्पाद इसके उदाहरण है, अमूल के प्रबंध निदेशक ने बताया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि वार्ता काफी आगे बढ़ चुकी हैं और एफटीए समझौता होने की संभावना है। नई दिल्ली को भारत के छोटे दूध किसानों के हितों पर ध्यान देना है नही तो लाखों किसान भयंकर गरीबी में फंस जाएंगे।