चीनी विनियंत्रण को लेकर कई दिनों से चले आ रही अटकलों पर विराम लगाते हुए सरकार ने चीनी पर से सरकारी नियंत्रण को खत्म करने का फैसला किया है। सरकार ने सी. रंगराजन कमेटी की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया है।
गौरतलब है कि देश में करीब 90 प्रतिशत चीनी सहकारिता के माध्यम से आती है। सहकारी चीनी कंपनियाँ अपने उत्पादन का दस प्रतिशत हिस्सा जिसे लेवी शुगर कहा जाता है सरकार को बेचने के लिए प्रतिबद्ध थी, सरकार इसी चीनी को बाजार में कम दाम पर उपलब्ध कराती है, लेकिन सरकार के इस फैसले के बाद चीनी की कीमतें पूरी तरह से बाजार पर निर्भर करेंगी।
सरकार का दावा है कि राशन की दुकानों में मिलने वाली चीनी के दाम पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। सहकारी चीनी कंपनियों ने भी चीनी के दाम बढ़ने संबंधी बातों को खारिज कर दिया है।
भारतीय सहकारिता डॉट कॉम से बात करते हुए नेशनल फेडरेशन ऑफ कॉपरेटिव शूगर फैक्ट्री लिमिटेड के एमडी श्री विनय कुमार ने कहा कि “हम सरकार के इस फैसले का स्वागत करते है, इससे चीनी की कीमतों में स्थिरता आएगी। यह कदम वित्तीय आवश्यकताओं के लिए बेहद जरुरी है, श्री कुमार ने कहा।”
इसमा की डिप्टी हेड पार्श्वती साहा ने भारतीय सहकारिता डॉट कॉम को बताया कि लेवी चीनी के बोझ को चीनी उद्योगों पर से हटाने से करीब 3000 करोड़ रुपए की वार्षिक बचत होगी।
उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से चीनी उद्योग को और अधिक व्यावहारिक बनाने में मदद मिलेगी।
सरकार के इस फैसले से सहकारी चीनी उद्योग काफी खुश है, सहकारी चीनी उद्योग काफी समय से चीनी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग कर रहे थे।
sahakarita dev. ke liye jaruri hai.