हाल ही में संशोधित 97वाँ सहकारी अधिनियम के मुताबिक बहुत ज्यादा धन वाली सहकारी समितियाँ नियंत्रण से बाहर हैं। अब वे स्वशासी और अभेद्य हैं।
लेकिन महाराष्ट्र में आम धारणा है कि सहकारिता का अर्थ ही कुछ दोष होता है। वे अनुशासनहीन और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हो रहे हैं, उन पर सख्त नजर रखे जाने की जरूरत है। इसी कारण वर्तमान में महाराष्ट्र सहकारी समितियों पर सूचना का अधिकार लागू किया जाए या नहीं, इस पर बहस जारी है।
महाराष्ट्र राज्य में लगभग साढ़े पांच करोड़ सदस्यों के साथ दो लाख से अधिक सहकारी समितियाँ है।
आरटीआई कार्यकर्ता विजय कुम्भर के अनुसार 97वाँ संवैधानिक संशोधन के अनुसार सहकारी समिति गठित करना एक मौलिक अधिकार बन गया है और सहकारी समिति संविधान के तहत गठित किया गया संगठन है, इसलिए आरटीआई उन पर स्वचालित रूप से लागू होता हैं।
संविधान के भाग 1XB के तहत सूचीबद्ध किया जा रहा सहकारिता लोकल सेल्फ गवर्नमेंट है और इसलिए वह आरटीआई के दायरे में आ जाएगा, श्री कुम्भर ने कहा।
हालांकि आरटीआई के तहत सहकारी समितियों को शामिल किए जाने का कुछ विरोध किया जा रहा है लेकिन सहकारिता आयुक्त ने कहा कि केवल सहकारी समितियों के सदस्यों के लिए यह कानून लागू हो सकता है।