इफकोविशेष

उच्च न्यायालय का केंद्र को नोटिस: इफको

मीडिया के हमले से दुखी होकर देश की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इफको ने अपनी स्वायत्तता बनाए रखने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। याचिका स्वीकार कर उच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी किया है।

अदालत में केंद्र से इंडियन फॉरमर फर्टिलाइजर कोआपरेटिव (इफको) का तर्क है कि सरकार की इसमें कोई हिस्सेदारी नही है और यह ‘गलत धारणा’ है कि उनका सहकारिता पर क्षेत्राधिकार है।

3 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने इफको की याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंद्रमित कौर की बेंच केंद्र को नोटिस जारी करते हुए सहकारिता पर अपने अधिकार या क्षेत्राधिकार के आधार पर अपने दावे पर स्पष्टीकरण मांग की जिसमें इफको उर्वरक विभाग के प्रशासनिक क्षेत्राधिकार और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के तहत कवर है।

इफको की ओर से अधिवक्ता हरीश साल्वे का तर्क है कि “सरकार की कोई भी हिस्सेदारी नही है नही बोर्ड नही बोर्ड पर कोई निदेशक और इसे एक गलत धारणा के तहत कार्यालय ज्ञापन (ओम) को 01.03.2013 को नैफेड जैसे अन्य बहु-राज्य सहकारी समितियों के बराबर याचिकाकर्ता को मान लिया गया है।”

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उर्वरक विभाग ने ज्ञापन जारी किया था जिसमें इफको के अवैध रूप से उसके प्रबंध निदेशक यू.एस.अवस्थी को दक्षिण दिल्ली में 50 करोड़ रुपए के बंगले का स्वामित्व दिये जाने की बात थी।

“बहु राज्य सहकारी समितियां इफको और कृभको दोनों की गतिविधियों को उर्वरक विभाग के प्रशासनिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आ जाते है”, 1 मार्च के आदेश में कहा गया है कि सदस्यों, पदाधिकारियों और इन सहकारी समितियों के कर्मचारियों का निर्णय सीवीसी अधिनियम, 2003 के तहत कवर किया गया था।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा सभी मंत्रालयों को आदेश जारी किया गया कि ऐसी सहकारी समितियाँ जिन्हें कदाचार में लिप्त पाया गया है और जो सार्वजनिक जांच से बच रहे थे, इस आधार पर कि उन्होने सरकार से कोई धन प्राप्त नहीं किया उनके खिलाफ उचित कार्यवाही की जाएगी।

उर्वरक विभाग के आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इफको के निदेशक (मानव संसाधन और लीगल) आरपी सिंह ने बताया कि 1 मार्च को दिया गया आदेश “कानून और संविधान के जिसाब से पूरी तरह गलत है”। उन्होंने कहा कि 1 फरवरी को कार्मिक विभाग द्वारा जारी किया गया आदेश में “2011 का संविधान (97वें) संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत, सीवीसी अधिनियम 2003, बहु राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम 2002, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 है।”

“उर्वरक विभाग ने जो कुछ कहा है उसे डीओपीटी ओम नं.399/2010-AVD-III ने 1 फ़रवरी 2013 को नहीं लिखा गया है। डीओपीटी के ओम ने इफको के नाम का उल्लेख नहीं किया है। वह कहते हैं कि सीवीसी नैफेड, कृभको, आदि जैसे बहु-राज्य सहकारी समितियों पर अधिकार क्षेत्र /अधीक्षण है। कृभको के विपरीत, भारत सरकार का इफको पर कोई नियंत्रण (इसे से अधिक) या कोई हिस्सेदारी नहीं है, “12 मार्च को सिंह ने पत्र के माध्यम से कहा।

“भारत सरकार इफको को ऋण की सहायता या कोई अनुदान, किसी भी ऋण प्रदान नहीं करता है। इसलिए भी इफको के निदेशक की नियुक्ति के मामले में उन्हें कोई अधिकार नहीं है। वह इफको के लिए कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते है। इसलिए कृभको की तरह इफको आँकलन करना गलत है,” सिंह ने कहा।

“हम उर्वरक विभाग से 1 मार्च 2012 को ओम में दिए गए इफको के नाम को हटाने के लिए भारत सरकार से अनुरोध किया है और ओम के अनुसरण में कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए कहा है।” पत्र राज्यों के सचिव को भी भेज दिया गया है जिसकी प्रतियां रसायन और उर्वरक मंत्रालय के सचिव एम.एम. मौर्य, कार्मिक विभाग और सचिव सीवीसी को भेज दी है।

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