केन्द्रीय सूचना आयोग ने इफको को सूचना का अधिकार अधिनियम से मुक्त करने की घोषणा की है। सहकारी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी ने सभी के आगे यह तर्क रखा कि सरकार की इफको में किसी भी प्रकार की कोई हिस्सेदारी नहीं है और इसके अपने मामलें कॉपरेटर्स के बोर्ड द्वारा संचालित किए जा रहे हैं, इसलिए सूचना का अधिकार अधिनियम की यहाँ कोई भूमिका नहीं है।
इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. यूएस अवस्थी ने फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “यह एक अच्छी खबर है और इससे द्वारा कानून का पालन करने में संस्था को बहुत संतोष मिलेगा। हमने हमेशा देश के कानून को बनाए रखने के लिए हमारे संविधान में निहित मार्गदर्शक सिद्धांत का पालन किया है और यह हमेशा ऐसा ही रहेगा।
डॉ. अवस्थी ने आगे कहा कि हमें कानून की गलत व्याख्या कभी नहीं देना चाहिए। लीगल और एचआर निदेशक श्री आर. पी. सिंह और उनकी टीम को और वह सभी जो हमारे सिद्धांत के साथ खड़े रहे उनको मेरी तरफ से हार्दिक बधाई देता हूँ, अवस्थी ने कहा।
इससे पहले शुक्रवार को सीआईसी ने फैसला सुनाया कि भारतीय किसान फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) लोक प्राधिकरण की परिभाषा में फिट नहीं होता है और इसलिए यह आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि सब्सिडी को पर्याप्त वित्तपोषण के रूप में नही लगाया जा सकता है।
सूचना आयुक्त सुषमा सिंह, बसंत सेठ और एमएल शर्मा की पीठ ने सहमति व्यक्त की है कि सहकारिता को केंद्रीय सरकार से भारी सब्सिडी मिल रही रही थी लेकिन उन रियायतों को निजी क्षेत्रों को दिया जा रहा है और इफको अद्वितीय नहीं है।
“सब्सिडी का प्रावधान खुले बाजार में उर्वरकों की बिक्री की कीमत कम रखना है ताकि उसको किसानों की पहुंच के भीतर रखा जा सकें। यह केवल उत्पादन की लागत और उर्वरक की बिक्री मूल्य के बीच के अंतर का भुगतान करने के लिए एक तंत्र है,” खंडपीठ ने कहा।
खंडपीठ ने कहा कि पीएसयू की संख्या कुछ समय पहले ही केंद्र सरकार ने वापस ले ली थी लेकिन वे नियंत्रण या उपयुक्त सरकार द्वारा पर्याप्त वित्तपोषण का सबूत नहीं है जब तक सार्वजनिक प्राधिकार नहीं समझा जा सकता।
“मामले की तथ्यात्मक मैट्रिक्स में यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार का अब इफको में पूंजी का कोई हिस्सा नहीं है। न ही इफको के निदेशक बोर्ड में किसी भी निदेशक को नामित किया गया है,” बेंच ने कहा।
एससी अग्रवाल और डॉ. एम हारून सिद्दीकी ने अपील खारिज करते हुए यह कहा कि सब्सिडी को इफको की पर्याप्त
वित्तपोषण के रूप में लगाया नहीं जा सकता था।
“इफको आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है कि इस निष्कर्ष पर आने में हमें कोई हिचक नहीं है,” यह कहा।
(पीटीआई से इनपुट के साथ)