यारा-कृभको रिश्वत कांड एक उच्च स्तर के आई.ए.एस. अधिकारी की संलिप्तता की ओर संकेत कर रहा है, सहकारी नेता की ओर नहीं.
कृभको के तत्कालीन अध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह ने राहत की सांस लेते हुए कहा “परियोजना में कुछ भी नहीं था. यदि कुछ सरकारी अधिकारी विदेशों में एक सौदा करते हैं तो हम कुछ नहीं कर सकते”.
एक मिलियन अमरीकी डालर का रिश्वत स्वीकार करने में नार्वे के जांचकर्ताओं द्वारा लिए गए नामों में जिवतेश सिंह मैनी और उनके बेटे गुरुप्रीत सिंह मैनी शामिल हैं. घटना सन २००७ की है जब जिवतेश सिंह मैनी भारत सरकार में उर्वरक विभाग के अतिरिक्त सचिव और वित्तीय सलाहकार थे. वे कृभको के बोर्ड पर थे. वे अन्य कई प्रतिष्ठित निकायों के बोर्ड पर भी थे, जैसे, एच.ए.एल., राष्ट्रीय रसायन एवं उर्वरक, मुंबई और मै. हिन्दुस्तान इंसेक्टीसाइड्स लिमितेड.
नार्वेजियन आपराधिक जांचकर्ताओं ने कहा है कि उर्वरक उत्पादक यारा ने सार्वजनिक क्षेत्र की फर्म कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) के साथ संयुक्त उपक्रम हासिल करने के लिए एक शीर्ष भारतीय नौकरशाह के बेटे को एक मिलियन डालर अवैध रूप से दिया है. नार्वेजियन अभियोजन पक्ष द्वारा हिन्दू समाचर पत्र को उपलब्ध कराये गए दस्तावेजों से यह बात साबित होती है.
दुनिया की सबसे बडी खनिज उर्वरक कंपनी यारा को भारत में कृभको परियोजना के लिए घूस देने के मामले में $ 48300000 का जुर्माना किया गया था. श्री गुरुप्रीत सिंह मैनी को १ जनवरी २००७ से ३१ दिसम्बर २००९ के बीच किश्तों में $ 3million का भुगतान किया जाना था.
दस्तावेजों से मालूम होता है कि यारा ने क्रिस्टल होल्डिंग्स एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स) नामक कंपनी के हांग कांग स्थित खाते में यह रकम जमा की. इस खाते की लाभार्थी जिवितेश सिंह मैनी और और गुरुप्रीत सिंह मैनी की पत्नियां थीं. श्री जिवितेश सिंह मैनी ने अपने सेल फोन नंबर पर किए गए कई कॉल और संदेशों का जवाब नहीं दिया.
इस बीच भारत सरकार में उर्वरक सचिव शशिकान्त दास ने बताया कि मंत्रालय को इन बातों की जानकारी है और उचित कदम उठाए जाएंगे.