गुजरात उच्च न्यायालय ने अपने ही एक आदेश को उलट दिया है और सहकारी समितियों में प्रवेश को आसान तथा पदाधिकारियों की सनक और फैंसी के लिए अभेद्य कर दिया है.
हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सहकारी समितियों में प्रवेश से संबंधित गुजरात सहकारी सोसायटी अधिनियम की दो महत्वपूर्ण धाराओं को संवैधानिक ठहराया है और कहा कि गुजरात सहकारी सोसायटी अधिनियम, 1961 की धारा 22 (2) और 24 भारत के संविधान के किसी भी प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करतीं. न्यायालय के दो जजों की बेंच ने पहले इन धाराओं को “असंवैधानिक” करार दिया था.
सूत्रों का कहना है हाई कोर्ट के फैसले का महत्वपूर्ण प्रभाव पडने की संभावना है. यह पदाधिकारियों की शक्ति को सीमित करेगा और सहकारी सदस्यता को खुला और आसान बनाएगा. इससे गुजरात में सहकारी दृश्य काफी बदल जाएगा, विशेषज्ञों ने कहा.
गुजरात राज्य के सरकारी अधिवक्ता पी.के. जानी ने कहा कि यह निर्णय राज्य में सहकारी समितियों के कामकाज पर एक दूरगामी असर डालेगा क्योंकि खुली सदस्यता की अवधारणा पात्र व्यक्तियों को सदस्य बनने का अधिक से अधिक अवसर प्रदान करेगा.
इस निर्णय से नए सदस्यों को शामिल करने में सहकारी समितियों के पदाधिकारियों की भूमिका सीमित हो जाएगी, जबकि इससे पहले उन्हें नए सदस्यों को शामिल करने के लिए एकमात्र विवेकाधिकार था.