कर्नाटक में गुलबर्गा से अंडमान में पोर्ट ब्लेयर तक, एनसीयूआई के प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ जुडे क्षेत्र परियोजना अधिकारी वित्तीय संकट की अपनी कहानियां कहते रहे हैं.
भारतीयसहकारित.काम अंतिम छोर के लोगों के मुद्दे उठाता रहा है. अतः एक पीडित ने हमसे अपनी समस्या का हल करने में उनकी मदद करने का निवेदन करने लगा, हमारे यह कहने के बावजूद कि हम पत्रकार हैं हम केवल मुद्दे को उठा सकते हैं.
यह एक परीक्षण का मामला है कि संकट की स्थिति में सहकारिता अपने सहयोगियों के साथ कैसा बर्ताव करती है. वैसे तो सहकारी नेता देश में मजबूत सहकारी आंदोलन की डींग हांकते रहते हैं, लेकिन वे इस तरह की व्यावहारिक समस्याओं के लिए कुछ नहीं करते और तथाकथित सहकारी भावना का मजाक उडाते हैं.
वे केवल 180 हैं जो भारत भर में फैले हुए हैं. वे उन परियोजनाओं में काम करते हैं जिनके बारे में एनसीयूआई और NCCT गर्व करने में कभी थकते नहीं. फिर भी जब उनके उपयुक्त पारिश्रमिक की बात आती है, एनसीयूआई के पांव ठंढे हो जाते हैं.
कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय के आग्रह पर उनके वेतन बढाने के तरीकों का अध्ययन करने और सुझाव देने के लिए एक समिति गठित की गई थी. लेकिन सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट अभी भी आनी है.
इससे पहले, भारतीयसहकारिता.काम से बात करते हुए एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी डॉ. दिनेश ने कहा कि भारत सरकार के निर्देश के बाद क्षेत्र परियोजना के कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन और उनके वेतन संरचना में एक उपयुक्त वृद्धि की सिफारिश करने के लिए एनसीयूआई द्वारा एक समिति गठित की गई थी. डॉ. दिनेश ने आगे कहा कि उन्हें दीवाली के आसपास मामूली बढ़ोतरी मिली है और पूर्ण पुनर्गठन जल्द ही किया जाएगा. लेकिन वह ‘जल्द’ अभी आना बाकी है, एक अधिकारी का कहना था.
वेतन संरचना का मूल्यांकन करने के लिए गठित समिति में एनसीयूआई, एनसीडीसी और कृषि मंत्रालय के सदस्य शामिल थे. वे पिछले पांच वर्षों से क्षेत्र की परियोजनाओं के कार्य और प्रभावकारिता का मूल्यांकन कर रहे हैं.