मंत्रालय द्वारा एम.एस.सी.एस.ऐक्ट 2002 की धारा 122 के तहत नोटिस भेजने के बाद उपभोक्ता मंत्रालय और एनसीसीएफ के बीच तनाव का माहौल है. सरकार के इस कदम से नाराज बोर्ड, जिसमें अध्यक्ष श्री बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में सहकारी नेता शामिल हैं, ने अदालत में सरकार को चुनौती दी है.
नोटिस में अध्यक्ष और बोर्ड पर सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना बैठकों का आयोजन करने और निर्णय लेने का आरोप लगाया गया है. मंत्रालय के विचार में प्रबंध निदेशक सक्षम प्राधिकारी हैं.
सख्त पत्र द्वारा बोर्ड को याद दिलाया गया है कि एनसीसीएफ में सरकार की हिस्सेदारी 78 फीसदी है. अतः एम.डी. की अनुपस्थिति में बोर्ड निर्णय नहीं ले सकता है.
एनसीसीएफ के सूत्रों के मुताबिक, मामला 21 जनवरी 2014 को हुई एनसीसीएफ बोर्ड की बैठकों से संबंधित है जो प्रबंध निदेशक एस.के. नाग की अनुपस्थिति में आयोजित की गयी थी. बोर्ड ने ऐसे मामलों पर निर्णय लिया जो नाग और उनके बॉस पूर्व एमडी परिदा के अनुरूप नहीं थे. अतः धारा 122 के तहत कथित नोटिस जारी हुआ – निदेशकों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर भारतीयसहकारिता.कॉम को बताया.
अफवाहों के बीच नाराज अध्यक्ष मंत्रालय द्वारा बोर्ड को सूपरसीड करने के प्रस्ताव के बारे में अदालत पहुंच गए.
भारतीयसहकारित.कॉम ने जब अध्यक्ष बीरेंद्र सिंह से पूछा तो वह बचते हुए लग रहे थे और इस मुद्दे पर ज्यादा टिप्पणी नहीं की. हालांकि उन्होंने कहा कि अतिरिक्त सचिव ने उन्हें आश्वासन दिया है कि बोर्ड को सूपरसीड करने का कोई प्रस्ताव नहीं है.
भारतीयसहकारिता.कॉम को मालूम हुआ है कि दोनों पक्षों के बीच तनाव को शांत करने के लिए प्रयास जारी है. इस संदर्भ में 27 मार्च को मंत्रालय द्वारा एक बैठक बुलायी गयी थी जिसमें जाहिरा तौर पर एनसीसीएफ के विकास पथ पर एक प्रस्तुति पर चर्चा की जानी थी. अध्यक्ष को कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं भेजा गया था लेकिन वे अतिरिक्त सचिव द्वारा टेलीफोन के माध्यम से बुलाए जाने पर बैठक में भाग लेने के लिए आए थे.
बात एमडी के कामकाज की शैली से उत्पन्न हुई -एनसीसीएफ के सूत्रों का दावा है. MSCS ऐक्ट के अनुसार प्रबंध निदेशक सीईओ के रूप में कार्य करेंगे और सहकारी संगठन के लिए समय देंगे. लेकिन वास्तविकता में परिदा ने एनसीसीएफ कार्यालय का दौरा कभी-कभार ही किया और वर्तमान एम.डी. श्री नाग ने लगभग दो महीनों के दौरान केवल कुछ घंटों के लिए सिर्फ एक बार एनसीसीएफ का दौरा किया है.
लेकिन प्रबंध निदेशक बारी-बारी से इस संगठन को निचोडने का कोई मौका नहीं छोडते – चाहे वह विदेशी दौरे हों या फेडरेशन की लागत पर निजी स्टाफ रखना. पूर्व एमडी ने एनसीसीएफ के बजट पर औसतन साल में दो बार विदेश का दौरा किया और एनसीसीएफ की लागत पर ओडिशा में एक निजी स्टाफ रखा था, गुप्त सूत्रों ने बताया. दिल्ली में उन्होंने संगठन की कीमत पर स्वयं और अपने परिवार की सेवा के लिए की चालक और निजी स्टाफ रख रखे थे. लेकिन 21 जनवरी की बैठक के बाद जो लड़ाई शुरू हुई है, वह इसलिय कि बोर्ड ने उनके कुछ पसंदीदा लोगों को प्रोमोट करने से इनकार कर दिया था . यह आरोप लगा है कि उन्होंने दो महिलाओं को लोअर डिवीजन क्लर्क के रूप में भर्ती किया था और उन्हें एक ही बार में तीन प्रोमोशन देकर फील्ड ऑफिसर बना दिया जिससे एनसीसीएफ के जनरल स्टाफ के बीच व्यापक असंतोष फैल गया.
एमडी की लाइन पर चलने से बोर्ड के इनकार करने पर मंत्रालय के बडे पदाधिकारी कोऑपरेटर्स के खून के प्यासे हो गए हैं. लेकिन एक बार के लिए कोऑपरेटर्स मंत्रालय से भिडने के लिए तैयार हैं.