एक विचार के रूप में सहकारिता का लोकसभा चुनाव में ज्यादा रोल नहीं है. लेकिन चाहे कितना बड़ा नेता हो, एकजुट हो रहे हैं, क्योंकि वे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में कदम रख रहे हैं. यहां सहकारिता फैसला करती है किसको स्वीकार करना है और किसको अस्वीकार.
महाराष्ट्र का यह क्षेत्र सहकारित आंदोलन कि भूमि रहा है जहां से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने सहकारी निकायों पर अपना नियंत्रण से अपना राजनीतिक रसूख का निकला है.
सहकारी चीनी कारखानों सहित अधिकांश सहकारी संगठन घोटाले, संदिग्ध लेनदेन और आंतरिक मतभेदों से हिले हुए हैं और ढहने के कगार पर खडे हैं. लेकिन देखने की बात है कि 97CAA लाने में पवार के योगदान को लोग कितना महत्व देंगे, जिसके तहत सहकारी समिति बनाने के अधिकार को एक मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा गया है.