गिनती चल रही थी और शुक्रवार को अगले प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के उद्भव की पुष्टि हो गई थी,उसी समय उपभोक्ता मंत्रालय के नौकरशाह एनसीसीएफ बोर्ड के अधिक्रमित के विचार को अंतिम रूप दे रहे थे.
शरद पवार की घटती ताकत का आभाष होते ही अधिकारियों ने बिना समय खोए एनसीसीएफ के निर्वाचित बोर्ड को भंग कर दिया जिससे सहकारी समितियों और कॉरपोरेटर का पूर्ण तिरस्कार हुआ.
एम.के. परिदा को नया प्रशासक नियुक्त किया गया और वे बिना समय गंवाए सर्वोच्च उपभोक्ता सहकारी का प्रभार लेने के लिए पहुंचे. परिदा ने कथित तौर पर अपने पसंदीदा लोगों को प्रोन्नति देने का निर्णय लिया जिन्हें तत्कालीन बोर्ड ने इनकार कर दिया था. यह भी कहा जाता है कि उन्होंने कर्मचारियों का डीए जारी कर दिया जिससे एक ही झटके में उनका विश्वास भी मिल गया.
एनसीसीएफ के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने कहा कि बोर्ड को सारहीन आधार पर सूपरसीड किया गया है और सुप्रीम कोर्ट में जांच के आगे नहीं टिकेगा. लेकिन उन्होंने सहकारी हित के लिए रैली करने के लिए सहकारी नेताओं का आह्वान किया. श्री सिंह ने चेतावनी दी है कि आज जो उनके सथ हुआ है भविष्य में औरों के सथ हो सकता है.
एनसीयूआई के वाइस चेयरमैन जी एच अमीन से जब इस मुद्दे पर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि निर्वाचित बोर्ड को सूपरसीड करना सही तरीका नहीं है. यदि कुछ गलत हुआ है तो जांच की जा सकती हैं या दोषी को सजा दी जा सकती है लेकिन अतिक्रमण का यह व्यवहार निंदनीय है.
पूरे नाटकक्रम की गति उल्लेखनीय थी. नई सरकार आने से पहले बाबू इसे कर लेना चाहते थे, एक पर्यवेक्षक ने टिप्पणी की.
हमें मालूए हुआ है कि मंत्रालय के नौकरशाहों ने इसे दिल से लिया है क्योंकि बोर्ड की पिछली बैठक में सदस्यों में से कुछ ने प्रबंध निदेशक एसके नाग का विरोध किया. कहा जाता है कि नाग ने बोर्ड की बैठक बीच में ही छोड़ दी है.
बाद में, जीत राम गुप्ता द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई करते दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनसीसीएफ के प्रबंध निदेशक एसके नाग की नियुक्ति के आदेश को निरस्त कर दिया गया है क्योंकि 23 दिसम्बर 2013 का कार्यालय आदेश क्षेत्राधिकार के बिना था. न्यायालय ने सरकार को कानून सम्मत तरीके से नए प्रशासक को नियुक्त करने की स्वतंत्रता दी है.
इस आधार पर मंत्रालय ने बोर्ड को सूपरसीड करना ठीक समझा जबकि पूरा भारत सांस रोके चुनाव परिणाम देख रहा था.