कृषि मंत्रालय में उप निदेशक एच.पी. जेमिनी को 16 जुलाई के लिए निर्धारित राष्ट्रीय श्रम सहकारी संघ(NLSF) के चुनाव के लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया है.
और इसके साथ ही निदेशक पद के लिए धुंआधार चुनाव प्रचार शुरू हो गया है. श्रम सहकारिता की सर्वोच्च संस्था के साथ कानूनी लड़ाई में उलझे श्री अशोक दबास चुनावों की घोषणा के बाद मुश्किल में पड गए हैं.
सूत्रों का कहना है श्री डबास बोर्ड में फिर से प्रवेश करने के क्रम में अध्यक्ष संजीव कुशलकर और प्रबंध निदेशक आर. एम. पांडे के बीच सेतु बनाने का प्रयास करना चाहते हैं.
इससे पहले NLCF बोर्ड ने प्रस्ताव पारित किया और श्री डबास को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि उनकी सहकारी समिति को राष्ट्रीय श्रम सहकारी फेडरेशन(NLCF) की सदस्यता से क्यों नहीं निष्कासित कर दिया जाय. श्री डबास ने इस पर कोर्ट से स्टे ले लिया है.
भारतीयसहकारिता.कॉम को विश्वसनीय सुत्रों से खबर मिली है कि श्री अशोक डबास, जो शीर्ष सहकारी संस्था एनसीयूआई में संचालन परिषद के एक सदस्य हैं, ने एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ. चन्द्र पाल सिंह यादव से संपर्क किया है ताकि संबंध सुधर सके.
श्री यादव, जिन्हें सहकारी जगत में एक बडी हस्ती माना जाता हैं ने NLCF के प्रबंध निदेशक श्री पांडेय को बुलाया था. लेकिन श्री डबास के बारे में श्री पांडेय के मजबूत आरक्षण के आभास से उन्होंने वह मुद्दा नहीं उठाया और बैठक सामान्य औपचारिकता में समाप्त हो गई.
बाद में एक स्रोत ने भारतीयसहकारिता.कॉम को बाताया कि श्री पांडे चाहते हैं कि अध्यक्ष संजीव कुशलकर मामले में हस्तक्षेप करें. श्री कुशलकर पुणे के रहने वाले हैं.
स्रोतों ने जानकारी दी है कि श्री डबास के पुनः शामिल करने के मुद्दे पर अगली बैठक अगले सप्ताह में हो सकती है.
श्री डबास के लिए चुनाव महत्वपूर्ण है जिनकी एनसीयूआई की शासी परिषद की सदस्यता NLCF बोर्ड पर उनकी जगह के साथ सह-अस्तित्व में है. यदि वे बाद में हार जाते हैं तो उन्हें एनसीयूआई से बेदखल कर दिया जाएगा जहां उन्हें अध्यक्ष श्री यादव से उपहार के रूप में एक कार्यालय मिला हुआ है.
श्री डबास के विरोधियों का कहना है कि वह चन्द्र पाल के साथ भी अपने संबंधों में कभी स्थिर नहींं रहे. अतीत में उन्हें हटाने के कई प्रकरणों से इसकी पुष्टी होती है.
श्री डबास और श्री पांडे के बीच एक पुरानी सामंती कहानी है. श्री डबास एम.डी. पर संसाधनों को बर्बाद और व्यावहारिक रूप से कुछ भी नहीं करने का आरोप लगाते हैं जबकि एमडी का आरोप है कि श्री डबास शीर्ष निकाय को नुकसान पहुँचाने के साथ उस पर कीचड़ उछालने में लिप्त हैं और इस तरह संस्था को कमजोर करते हैं.
लड़ाई ने एक कड़वा मोड़ ले लिया जब NFCL के बोर्ड ने एनसीयूआई बोर्ड से उनका नाम वापस लेने के लिए एनसीयूआई को लिखा क्योंकि श्री डबास अब NFCL के प्रतिनिधित्व नहीं हैं.
इस मामले में श्री डबास केंद्रीय पंजीयक के पास पहुचे जहां से उन्हें राहत मिली है.