मोदी सरकार के एक महत्वपूर्ण सदस्य गोपीनाथ मुंडे हाल ही में राजधानी में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए. वे महाराष्ट्र की सहकारी दुनिया के एक बडी सख्सियत थे.
क्षेत्र में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही समस्याओं को हल करने में शरद पवार के प्रतिद्वंदी थे. सहकारी मामलों पर नजर रखने वाले सूत्रों का कहना है कि उनके असामयिक निधन से महाराष्ट्र के इस हिस्से में सहकारी आंदोलन को एक बड़ा नुकसान हुआ है.
एक ट्वीट में इफको ने गोपीनाथ मुंडे के असामयिक निधन पर दु:ख व्यक्त किया है.
मृतक को क्षेत्र में गन्ना मजदूरों और ट्रांसपोर्टरों के एक संगठन की स्थापना के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने न केवल एक अंतराल पर उनकी मजदूरी बढ़ावाई बल्कि निहित स्वार्थों द्वारा धमकी दिए जाने पर हमेशा उनके साथ खडे होते थे.
उन्होंने मराठवाड़ा क्षेत्र में कई सहकारी चीनी मिलों की स्थापना में मदद की थी. लोगों का मानना था कि वह स्थानीय सहकारी आंदोलन पर एक महान प्रभाव रखते थे.
मुंडे के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण में कई चीनी कारखाने कुशलतापूर्वक चलते थे. उन्होंने सहकारी क्षेत्र में कांग्रेस-एन.सी.पी गठबंधन को एक अच्छी चुनौती दी थी.
उन्होंने सन् 2000 में सहकारी क्षेत्र के साथ अपनी भागीदारी शुरू की और अपने जीवन के अंत तक इसे ऊपर उठाते रहे. Cooperators के बीच उनकी लोकप्रियता दलगत भावना से ऊपर थी.