सहकार भारती के राष्ट्रीय आयोजन समिति (विभिन्न क्षेत्रों में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक निकाय) ने बहुराज्य सहकारी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के वापसी की मांग की है.
सहकार भारती के अध्यक्ष सतीश मराठे ने भारतीयसहकारिता.कॉम से बातचीत में बहुराज्य सहकारी सोसायटी विधेयक 2010 में प्रस्तावित कुछ संशोधनों को अप्रिय करार दिया दिया.
“मैं मेरे सामने कागजात नहीं है. इसलिए मैं सहकारी आंदोलन के लिए जो हानिकारक हैं, उनकी बिंदु वार व्याख्या नहीं कर सकता हूं. यूपीए सरकार ने कई तरह के संशोधन पेश किए जिन्हें बासुदेव आचार्य की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सहकारी आंदोलन ‘की भावना के खिलाफ मानते हुए एकमुश्त में अस्वीकार कर दिया है, मराठे ने कहा”.
सहकार भारती के मुख्य ने कहा,- “संक्षेप में, एजीएम की सहमति के बिना व्यापक परिवर्तन का प्रस्ताव रखा गया, निर्वाचित बोर्ड का कार्यकाल बढ़ाया या कम किया जा सकता है. इसके अलावा प्रस्ताव है कि यदि एक सहकारी समिति लगातार तीन साल के लिए नुकसान में है तो इसे नष्ट किया जा सकता है या इसकी संपत्तियों को गिरवी रखा जा सकता है.”
मराठे ने कहा कि यूपीए सरकार निर्वाचित बोर्ड से सभी शक्ति और पहल छीन लेना चाहती थी और सहकारी समितियों को ट्रस्ट बानाना चाहती थी.
कुल 19 संशोधन विधेयक में प्रस्तावित हैं, उनमें से कुछ से बहु – राज्य सहकारी समितियों पर एक बड़ा असर पड़ेगा. संसदीय समिति के सदस्यों में से एक श्री धर्मेन्द्र प्रधान नई सरकार में मंत्री बन गए हैं. उन्होंने सरकार की सिफारिशों में से कई का विरोध किया था, मराठे बोले.
यह सहकारी की सरासर किस्मत थी कि कई अन्य वजह से बिल पारित नहीं हो सका है. अब पूरे मामले को फिर से खोलने के लिए और सभी हितधारकों की राय की लेने के लिए नई सरकार से अपील की जाएगी.