आरबीआई के एक उच्च पदाधिकारी का कहना है कि बड़े शहरी सहकारी बैंकों के पूरे नियामक ढांचे पर पुनर्विचार की जरूरत है क्योंकि उनके व्यापार के संचालन, आकार और जटिलता के मामले में एक बुनियादी बदलाव आया है.
सारस्वत सहकारी बैंक ने पिछले कुछ वर्षों में एक निजी वाणिज्यिक बैंक के रूप में काम करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
भारतीयसहकारिता.कॉम से बातचीत में सबसे बड़ा यूसीबी के अध्यक्ष श्री एकनाथ ठाकुर ने कहा कि पहले एक निश्चित बिंदु के बाद मौजूदा ढांचे में वृद्धि की गुंजाइश नहीं रहती हैं. इसलिए इसे सहकारी के दायरे से बाहर लाने जरूरत है.
उन्होंने रेखांकित किया कि इस मुद्दे पर चर्चा की जानी चाहिए और आवश्यक कानूनी कदम से सहकारी बैंकों को निजी वाणिज्यिक बैंकों में परिवर्तित करने की अनुमति मिलनी चाहिए. वह अहमदाबाद में शहरी सहकारी बैंकों पर सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
एपेक्स बैंक अधिकारी ने बताया कि मौजूदा प्रतिबंधात्मक मानदंडों को दूर करने और वातावरण को उदार बनाने से निस्संदेह सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को सहज और गैर-विघटनकारी विकास में बढ़ावा मिलेगा.
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, आर्थिक रूप से कमजोर शहरी सहकारी बैंकों की संख्या में गिरावट दर्ज किय गया है और उनके जमा और अग्रिम में बढोत्तरी हुई है.
सूत्रों का कहना है भारतीय रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने जैसी वकालत की थी एक छाता संगठन का विचार शहरी सहकारी बैंकों को बहुत लाभ देगा. यह निकाय उन्हें तरल मुद्रा के समर्थन के साथ ही जरूरत की अन्य महत्वपूर्ण सेवाएं भी दे सकता है.