किसानों की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इफको के निदेशक डॉ गोपाल नारायण सक्सेना को शुक्रवार को उनके सहयोगियों द्वारा दिल्ली में आयोजित इफको की बोर्ड की बैंठक में विदाई दी गई। गौरतलब है कि सक्सेना सबसे बड़ी उवर्रक सहकारी संस्था से रिटायर हुुए है।
डॉ सक्सेना करीब चार दशकों तक इफको में सक्रिय रहे। उन्होंने संगठन के विकास में कई उतार-चढ़ाव भी देखे। संगठन के सर्वोत्तम हित के लिए उन्हें अक्सर कृषि मंत्रालय से लेकर कानून मंत्रालय समेत कई अन्य मंत्रालयों के चक्कर लगाते देखा जा सकता था।
इफको के प्रबंध निदेशक डॉ यू.एस.अवस्थी ने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा ” मेरे सहयोगी डॉ जी.एन.सक्सेना आज रिटायर हो गए है। इफको के लिए उनका अमूल्य योगदान हमेशा याद किया जाएगा।”
एक अन्य ट्वीट में एमडी ने डॉ सक्सेना को शुभकामनाएँ दी। डॉ अवस्थी ने कहा कि डॉ जी.एन सक्सेना ने इफको पर अपनी छाप छोड़ी है। मैं उनके भविष्य के लिए शुभकामना देता हूँ;भगवान उन्हें अच्छा स्वास्थ्य दे।
डॉ जी.एन सक्सेना को सहकारिता के विभिन्न क्षेत्रों के कानूनों और अधिनियमों के बारे में अच्छा ज्ञान है और सहकारी मुद्दों को हल करने को लिए देशभर से लोग उनकी मदद लेते थे। लेकिन बहुराज्य सहकारी अधिनियम 2002 में उनकी प्रभुत्व जानकारी मानी जाती है।
बिना किसी उदासी भाव के अपनी विदाई के थोड़ी देर बाद डॉ सक्सेना ने भारतीय सहकारिता से कहा ” जीवन के कई फेज हैं और मैं अब एक नए फेज में प्रवेश कर रहा हूं। मैं 43 साल पहले जूनियर स्टेटीस्टियएन के रूप में इफको से जुड़ा था और आज सबसे बड़ी सहकारी संस्था के कार्यात्मक निदेशक के रूप में रिटायर हो रहा हूं।”
सहकारी विकास के निदेशक होने के नाते दिल्ली स्थित इफको मुख्यालय की दुसरी मंजिल पर उनके विशाल कक्ष में आये दिन आगंतुको का जमावड़ा देखने को मिलता था। वह प्यार से उनसे मिलते थे और चाय की पेशकेश जरूर करते भले ही उनका काम हो न हो।
लेकिन इतने साल सहकारी समिति में काम करने के बाद भी वे अपने को मित्रहीन मानते थे। उन्होंने इस संवाददाता से एक बार कहा था कि मैं कई लोगों से मिलता तो हूं पर मैं उनके साथ गहरे रूप से जुड़़ने में सक्षम नहीं हूं। शायद सहकारिता की राजनीति में संदेह करते-करते आदमी किसी भी इंसान पर भरोसा करना ही भूल जाता है, उनके एक मित्र ने बताया।
डॉ सक्सेना अपने मित्रों और प्रशंसकों के बीच डॉक्टर साहिब के रूप में जाने जाते है। सक्सेना इफको के लिए एक वैश्विक चेहरा भी थे जिन्हें अवस्थी अक्सर इफको के इमेज-बिल्डिंग के लिए विदेश भेजा करते थे। लोकिन गौअडा और पटेल की लगातार हुई हार ने उनके साख पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। हालांकि उनके मित्र सिर्फ सक्सेना को दोषी नहीं मानते।
आप उनसे प्यार कर सकते है या नफरत, लेकिन आप उन्हें नजरअंदाज नही कर सकते। डॉ सक्सेना के दिमाग में क्या चल रहा है कोई पढ़ नहीं सकता। घोटलों से बेदाग रहे डॉ सक्सेना मित्रों और प्रशंसकों को हमेशा याद आएंगे।