संसद के सदस्य और विधायक अब मध्य प्रदेश की सहकारी समितियों के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनने के लिए सक्षम नहीं होंगे।
अतीत में कई सहकारी सेमिनारों में दिग्गज नेताओं ने कई बार अपने भाषण में इसका समर्थन किया है और अखिर में मध्य प्रदेश सरकार ने इस विषय पर खरा उतरते हुए इसे हरी झंडी दिखा दी है। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ यू.एस.अवस्थी ने भी पूर्व में भारतीय सहकारिता से बातचीत के क्रम में सांसदों और विधायकों को समितियों के शीर्ष पदों पर नहीं होने का समर्थन किया था।
मध्य प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि विधायकों और सांसदों को संस्था के प्रतिनिधि या निदेशक के रूप में स्थान दिया जाएगा। गौरतलब है कि गुरूवार को मध्य प्रदेश विधानसभा द्वारा मध्य प्रदेश सहकारी समिति बिल में संशोधन को हरी झंडी दिखा दी गई है।
नए कानून में स्पष्ट किया गया है कि समितियों के कार्यकाल खत्म हो जाने तक समिति प्रशासकों द्वारा नियंत्रित की जाएगी और बाद में छह महीनों के भीतर समिति में चुनाव कराने का फैसला लिया जा सकता है।
सहकारी बैंकों में चुनाव की अवधि को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। नए कानून के अनुसार सांसदों और विधायकों के अलावा, जिला पंचायत, ग्राम पंचायत, स्थानीय नगर निकायों, विपणन बोर्ड या विपणन समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी सहकारी संस्था के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष नही बन सकते है।